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Sat Namo Adesh, Guruji Ko Adesh, Om Guruji, Mukhe Brahma Madhye Vishnu Ling Naam Maheshwar Sarvadeva Namaskaram Rudrakshaya Namoh Namah. Gaganmandal May Dhundhukara Pataal Niranjan Nirakaar. Nirakaar May Charna Paduka, Charna Paduka May Pindi, Pindi May Vasuk, Vasuk May Kasuk, Kasuk May Kurm, Kurm May Mari, Mari May NaagFani, Alash Purush Nay Bail Kay Seengh Par Rai Thaharahi. Dhiraj Dharm Ki Dhuni Jamai. Vahaan Par Rudraksha Sumer Parvat Par Jamaiye Usme Se Phootay 6 Dali, Ek Gaya Purv, Ek Gaya Dakshin, Ek Gaya Paschim, Ek Gaya Uttar, Ek Gaya Akaash, Ek Gaya Pataal, Usme Lagya Ek Mukhi Rudraksha, Shri Rudra Par Chadaiye. Shri Onkaar Adinath Ji Ko, Do Mukhi Rudraksha Chadaiye Chandra Surya Ko, Teen Mukhi Rudraksha Chadaiye Teen Loko Ko, Chaar Mukhi Rudraksha Chadaiye Chaar Vedon Ko. Paanch Mukhi Rudraksha Chadaiye Paanch Pandavo Ko, Chaah Mukhi Rudraksha Chadaiye Shat Darshan Ko, Saat Mukhi Rudraksha Chadaiye Sapt Samudro Ko, Astha Mukhi Rudraksha Chadaiye Astha Kuli Nago Ko, NavMukhi Rudraksha Chadaiye NavNaatho Ko, Dash Mukhi Rudraksha Chadaiye Dash Avtaaro Ko, Gyaara Mukhi Rudraksha Chadaiye Gyaara Rudra Ko, Dvaadash Mukhi Rudraksha Chadaiye (Surya) Baraah Panth Ko, Terah Mukhi Rudraksha Chadaiye Tentees Koti Devtao Ko, Chaudhah Mukhi Rudraksha Chadaiye Chaudhah Bhuwan (Chaudhah Ratno) Ko, Pandrah Mukhi Rudraksha Chadaiye Pandrah Thithiyo Ko, Solah Mukhi Rudraksha Chadaiye Solah Shringaar Ko, Satraah Mukhi Rudraksha Chadaiye Shri Sita Mata Ko, Attharaha Mukhi Rudraksha Attharaha Bhaar Vanaspati Ko, Unnees Mukhi Rudraksha Chadaiye Alash Purush Ko, Bees Mukhi Rudraksha Chadaiye Vishnu Bhagwan Ko, Ikkis Mukhi Rudraksha Chadaiye Ikkis Brahamaand Shiv Ko,Nir Mukhi Rudraksha Chadaiye Nirakaar Ko, Itna Rudraksha Mantra Sampurna Bhaya, Shri Nath Ji Kay Charan Kamal May Adesh, Adesh
--------- जय श्री आदि नाथ जी ----------
------------ ज्ञान चालीसा ------------------- सत नमो आदेश . गुरु जी को आदेश . ॐ गुरु जी . ॐकार नाद से उत्पति माया . आदि नाथ संग पार्वती माता . सुन पार्वती कहें महादेव . भेद नाद बिन्द का जाने बिरला . 1!! ॐ आदि नाथ मुखै ज्ञान प्रगटाया . पर जोग निंद्रा भई माता गौरजा . शब्द शब्द पर हुँकाराया . ध्यान ज्ञान से भेद को पाया !!2!! क्षीरसागर तट पर हुंकार समाया . राघौ मत्स्य गर्भ बालक बैठा . गर्भ ज्ञान शिव ने कराया ,मत्स्येन्द्र नाम का जोगिन्दर प्रगटा !!3!! सत गुरु ज्ञान को धारण कीन्हा ,तब पीच्छे गुरु गोरखनाथ को दीन्हा ! देखो सिद्धों यही ज्ञान अनन्त कोट सिद्धों को गुरु गोरखनाथ पढ़ कथ कर सुनाया !!4!! आदि नाथ पारब्रह्म शिव शक्ति प्रथम आदि उत्पति माया ! ॐकार रुप नाद बिन्द कहाया ,बिन्दु रुप बोलिए काया !!5!! उदै भइला सूर अस्त भईला चंदा दूहू बीच कल्पना काल का फंदा उदै अस्त एक कर बासा तब जानिबा जोगींद्र जीवन आसा ! बारह कला रवि सोलह कला शशि ! चारी कला गुरुदेव निरंतर बसी !!6!! हीन पद सुराया लागा डँसा ! तन का तेज ले उड़िया हँसा ! हँस का तेज ले थिर रहे काया ! काल का भेद ले कहो गुरु राया !!7!! द्वै पंख छेदी एक है रहना ,चंद सूर्य दोउ सम कर गहना ! ऊंच भै ऊपरै मध्य निरंतरे ता तल भाट जराई !!8!! शीजी अमिरस कंचन हुआ यही विधि पिंजरे बनवै सुआ ! उपजत दीसन्त निपजत नाहीं ! आवरण नास्ति संसार माही !!9!! बूझले सत्गुरु बुद्धि भेद सिद्ध संकेत ,परचा जानी लगाबो हेत ! उरम धूरम ज्योति ज्वाला ,नौ कोटि खिड़की पूर ले ताला !!10!! ताला ना टूट खिड़की न भांजे ,पिंड पड़े तो सत्गुरु लाजे ! भरे सागर धुनि धूसर कूची तहां सकल विध है सोई सूची !!11!! यही विधि अतीत योगी होई ,अमर पद ध्याबत बिरला कोई ! सहज मरे अष्ट पग धरना ,ज्ञान खड्ग ले काल सण्हर्णा !!12!! अमर कोट काया एक कोट मध्ये ,जीतले यम पुरी राखि ले कंधे ! आत्मा झुझजती गोरखनाथ किया ! संसार विनाशा आपन जिया !!13!! झूझँत सुरा बूझन्त पूरा अमर पद ध्याबँत गुरु ज्ञान वँका !दल को मारि जंजाल को जीतले ,निर्भय होई मिटिले मन की शंका ! अझूझि झूझि ले पैस दरिया ! मूल बिन वृष अमिरस भरिया !!14!! तन मन कर ले शिव पूर मेला ,ज्ञान गुरु जोगी संसार चेला ! मन राई चंचल थान स्थित नाहीं ! बाँधी ले पंचभूत आत्मा माही ! अलष अकथ चछुबिन सूझिया ! सिद्ध का मार्ग साध के बूझिया !!15!! परख बिन गुरु करे युगत बिन वहि मरे ,विचार उपरांति कछु ज्ञान नाहीं ! भ्रमि भूलें ते वहि चले पंडिता ,उतरे पार ते फिरी समाहि !!16!! शब्द की परखा नहीँ सबद हुआ ,ज्ञान का पारिखा जीबता मुंआ ! रहती करनी मुखे प्रकाश ,नासिका जानत पहुप की बास !!17!! उलटी यंत्र धरे शिखर -आसन करे कोटि सर छूट घाव नाहीं ! सिलहट मध्ये काबरु जीतले ,निर्मल धूनी गगना माही !!18!! मन की भ्रमना तब छूटते होई योगिँद्रा ,जब बिचारँत निहशबद की वाणी ! नैन कै दाता सार धरि पीसीबा तब योग पद दुर्लभ सत्य कर जानी !!19!! उलटी गँगा ऊपर चले धरान ऊपर ,मिले नीर में पैस्सी करि अग्नि जाले ! घटहि में पै शिखर कूप पानी भरे ,तब पई परिपुरुशा आप उजाले !ज्ञान के के प्रगटे श्री शम्भुनाथ पाया ,अकल अकथ जती गोरखनाथ ध्याया !!20!! संसार में भ्रमिया सर्व भ्रम सोई ,निज पद पीबता बिनस्या ना कोई !बजरंग कोटरि पर दल पूरा ! पंच मुंआ सब जग पहुँचा स सुरा !!21!! मन सो झूझना खाँड़ा न लागे शून्य गढ़ रम रहे तो दीप धूनी जागे ! धरणी ना सोखे अग्नि न खाई ,वैली का रस ले भौंरा न जाई ! !22!! कथनी कथि हो पंडित रहनी न पाई ! आचार के बँधे मनसा गमाई ! कथत श्री शंभूनाथ सुनो नर लोई भ्रम में भूला सो बहुरा न कोई !!23!! भूल्या सो भूल्या बहुरि चेतना ,संसार के लोहे आपा न रेतना ! भेष तज भ्रम तज राखी सत्य सोई ,तत बिचारता देवता होई !!24!! आपा सोँधो ब्रह्म निरोधि सहज पलटी जोती ! काया के भीतर मणि माणिक निपजे तहां धुनि धुनि बरसें मोती !!25!! अरध उरध सम्पुश्टि करीजे !शंखनि नाल अमीरस पीजे ! अखंड मण्डल तहां नाद मेरी ले ,हरि आसन तहां भक्त करीले !!26!! आलेख मन्दिर तहां शिव शक्ति निबासा ,सहज शून्य भया प्रकासा ! तहां चंद बिन चाँदनी अग्नि बिन उजाला ! ए तन भेद अंत वृद्ध वाला !!27!! करताज तजी हूँ आसक्त hu हूँ न जाई ,मन मृग राखिले वाड़ी न पाई ! आकाश वाड़ी पाताल कुआँ भरी भरी सीचता जो सिद्ध huaaहूआ !!28!! अवधू अमर कोटकाया आलेख दरवाजा ! ज्ञानी gadगढ़ आसन प्राण भयो राजा !!29!! अवधू फेरी ले तो तत सार बुद्धि सांच ! नही toतौ लोहा गडिले तो कंचन नहीँ toतो काँच !!30!! अवधू सिद्धा पाया साधक पाया ते ऊतरिया पार कथँत जती गोरखनाथ चेते न जानत विचार ते जल भए अंगार !!31!! अवधू ऐसा नगर हमारा तिहा जीव आवो ऊजु द्वार !अरध उरध बजार मण्डियां है गौरष कहें विचार !!32!! हरि प्राण पातिसाह विचार काजी !पंच तत ते उजहदार ,मन पवन होऊं हस्ती घोड़ा ,गिनाँते आंखै भंडार !!33!! काया हमारी शहर बोलिये मन बोलिये हज दार ! चेतन पहरे कोतवाल बोलिये ,तो चोर न झांकें द्वार !!34!! तीनसौ साठ चीरा gadगढ़ रचीले सोलह खनिले खाई !नव दरवाजा प्रगट डीसे दसवां लखा न जाई !!35!! अठारह भार कोट कन्ठजरा लाईले बहत्तर कोठरी निपाई ! नव सत्र ऊपरे जंतर फिरे ,तब गाया गढ़ लिया नहीँ जाई !!36!! अनहद घड़ी घड़ियाल बजाइले ,परम ज्योति दुई दीपक लाई ! काम क्रोध दोई गरदन मारिले ,ऐसी अदली पात शाही बाबे आदम चलाई !!37!! तहां सत्य बीबी संतोष साहीजादा सीमा भक्ति द्वै दाई ! आदि नाथ नाती मत्स्येन्द्र पूता काया नगरी गोरख बसाई !!38!! ऐसा उपदेश दिखै श्री गोरख राया , जिनी जगचतुर वरन राह लाया पढ़ले ससंबेद करिले विधि ज़षेद !जानिले भेदान भेद पूरिले आशा अमेद ,विषमी साधे मंसारी संझाया पंचों बखत सार ! रहिबा दसवें द्वारी सैइबा पद निराकार !!39!! जप ले अजपा जाप ! विचार लेआपो आप ,छुटला सब बियाप ! लिपे नाहीं तहां punyपुन्य पाप ! अहो निष समो ध्यान ! निरंतर रमे बा राम ,कथे गोरखनाथ जी ज्ञान ; पाईला परम निर्धान !!40!! श्री नाथ जी को आदेश !!!
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-------- जय श्री आदि नाथ जी ----------- रुद्राक्ष का मन्त्र सत गुरु नमो आदेश ! गुरु जी को आदेश ! ॐ गुरुजी ! मुखे ब्रह्माजी मध्ये विष्णु लिंग नाम महेश्वरा !सर्व देव नमस्कारम रुद्राक्षाये नमो नम: ! गगनमन्डल धूधूकारा पाताल निरंजन निराकारा ! निराकार में चरण पादुका ,चरण पादुका में पिंडी पिंडी में बासुक ,बासुक में कासुक ,कासुक में कूर्म ,कूर्म में मरी ,मरी में नागफ़नी ,नागफ़नी पर धौल बैल -धौल बैल के सींग पर राई ठहराई ! धीरज धर्म की धूनी जमाई ! वहाँ पर रुद्राक्ष सुमेर पर्वत पर जमाईये उसमे से फूटें छः डाली ! एक गया पूर्व एक गया दक्षिण -एक गया पश्चिम -एक गया उत्तर -एक गया आकाश -एक गया पाताल -उसमें लाग्या एक मुखी रुद्राक्ष ,श्री रुद्र पर चडाइए ! श्री ॐकार आदि नाथ जी को !(कंठ ) दो मुखी रुद्राक्ष चढ़ाइए चंद्र सूरज को ! (मस्तक ) तीन मुखी रुद्राक्ष चढ़ाईए तीन लोकों को ! (दाहिनी भुजा ) चतुर्मुखी रुद्राक्ष चढ़ाइए चार वेदों को ! (मस्तक पर ) पाँच मुखी रुद्राक्ष चढ़ाइए पाँच पांडवों को ! (बाई भुजा ) छः मुखी रुद्राक्ष चढ़ाइए षटदर्शन को ! (गले में ) सात मुखी रुद्राक्ष चढ़ाइए (सप्तऋषि ) सप्त समुद्रों koको ! (दाहिनी हथेली ) अष्ट मुखी रुद्राक्ष चढ़ाइए अष्ट कुली नागों को ! (आसन ऊपर ) नव मुखी रुद्राक्ष चढ़ाइये नव नाथों को ! (हृदय स्थान ) दस मुखी रुद्राक्ष चढ़ाइये दस अवतारों को ! (दाहिनी भुजा ) ग्यारह मुखी रुद्राक्ष चढ़ाइये ग्यारह रुद्र को ! (जटाओं में ) द्वादश मुखी रुद्राक्ष चढ़ाइये ! बारह मुखी रुद्राक्ष चढ़ाइये बारह पंथों को ! (हृदय स्थान ) तेरह मुखी रुद्राक्ष चढ़ाइये तैतीस कोटि देवताओं को !( दाहिनी हथेली ) चौदह मुखी रुद्राक्ष चढ़ाइये चौदह भुवन को ! (आसन ऊपर ) पंद्रह मुखी रुद्राक्ष चढ़ाइये पंद्रह तिथियों को ! (बाई भुजा ) सोलह मुखी रुद्राक्ष चढ़ाइये सोलह श्रंगार को ! (आसन के नीचे धर्तरी ऊपर ) सत्रह मुखी रुद्राक्ष चढ़ाइये श्री सीता माता को ! (आसन के नीचे धरत्री ऊपर ) अठारह मुखी रुद्राक्ष चढ़ाइये अठारह भार वनस्पतियों को (अठारह पुराण )को ! (बाई हथेली में ) उन्नीस मुखी रुद्राक्ष चढ़ाइये अलष पुरुष को ! (गले में ) बीस मुखी रुद्राक्ष चढ़ाइये विष्णुजी भगवान को ! (बाई हथेली ) इक्कीस मुखी रुद्राक्ष चढ़ाइये इक्कीस ब्रह्मांड शिव को ! (जटाओं में ) निरमुखि रुद्राक्ष चढ़ाइये निराकार को ! श्री नाथ जी को आदेश आदेश आदेश
------------------------------------------------------------ ------- जय श्री आदि नाथ जी --------------- आसन नाथ सिद्धों के योग माया कर्म कांड में आसन विधान अनुसार कुशासन लगाने से ज्ञान की प्राप्ति होती है ! उस के ऊपर बस्त्रासन लगाने से शक्ति की प्राप्ति होती है ! तथा कम्बलासन लगाने से मनोकामना सिद्धि प्राप्ति होती है ! अतः कुशासन ,वस्त्र या कम्बलासन अत्यंत शुद्ध पवित्र एवं सात्विक गुण सम्पन्न होते हैं ! इन आसनों पर जो भी साधना अर्थात तन्त्र मन्त्र तथा सिद्धियाँ ,पूजा कर्म कांड ,उपासना एवं यौगिक साधना करने पर साधक को ज्ञान सिद्धियाँ तथा सात्विक गुणों की प्राप्ति होती है ! इन आसनो पर देवी देवता ,ऋषि मुनि एवं नाथ सिद्धों के साक्षात्कार दर्शन होते हैं विशिष्ट समय ,विशिष्ट मन्त्र रोज़ लगातार 41 दिन तक करने पर आसन सिद्ध होता है ! तथा सवा वर्ष साधना करने पर ज्ञान कैवल्यानंद की प्राप्ति होती है ! इसमें ब्रह्मचर्य का नियम आवश्यक है नाथ सिद्धों ने और भी आसनों पर हुई साधनाओ का अनुभव प्रचिती निम्न प्रकार से होती है ! 1- कम्बलासन पर साधना -- सर्व कामना सिद्ध होती है ! 2 - मृगासन पर साधना -- सम्मोहन आकर्षण प्राप्ति होती है ! 3-- काले हिरण खाल पर साधना -- मुक्ति मोक्ष की प्राप्ति ! 4-- बाघाम्बर आसन पर साधना -- मोक्ष प्राप्ति होती है ( तामसी साधना ,--तामस गुण ,कापालिक गुण प्राप्ति होते हैं ) 5-- कुशासन पर साधना -- ज्ञान की प्राप्ति 6-- पत्तों के आसन पर साधना -- पत्तों के आसन पर साधना करने से दीर्घायु प्राप्ति होती है ! 7-- भबूति का आसन -- श्मशान वैराग्य ,त्याग की प्राप्ति होती है ! 8-- श्वेताम्बर आसन पर - ज्ञान ,विद्या ,कला ,वैभव ,समृद्धि की प्राप्ति होती है ! 9-- पीताम्बर आसन -- पीले वस्त्र परिधान कर या रेशमी वस्त्र पहनकर या रेशमी बस्त्रासन पर साधना करने पर पुष्टि कार्य ,समृद्धि कार्य प्राप्ति होती है ! 10-- भगबासन आसन -- सच्चे सत्गुरु की प्राप्ति होती है 11-- गौ मूत्र या गोबर लेपन भूमि पर कम्बल या बस्त्रासन पर साधना करने पर मुख्यतः गौ लोक गमन होता है ! ब्रह्मा विष्णुजी महेश तथा देवी देवता प्रसन्न होकर दर्शन देते हैं ! मृत्युंजय मन्त्र साधना करने पर आधी व्याधि ,ज़रा मरण से मुक्त होकर स्वर्ग सुख प्राप्ति होती है ! 12-- हस्तीचर्म आसन -- साम ,दाम दण्ड की प्राप्ति होती है ! 13- सिंहासन आसन -- राज़ योग की प्राप्ति होती है ! 14-- चीताम्बर आसन अथवा शबासन या प्रेतासन या मुरदे के ऊपर बैठ कर साधना करने पर श्मशान सिद्धियाँ ,तामसी ,कापालिक ,भैरवी ,बेतालादी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं ! मारन उच्चाटन ,भूत प्रेत वशीकरण आदि मृतात्मा आत्मा द्वारा कार्य सिद्धियाँ आदि अभीष्ट सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं ! यह गुरु मार्ग दर्शन पर करना उचित है !!! कुछ निषिद्ध आसन साधनाये 1-- पत्थरासन पर साधना - दुःख क्लेश की प्राप्ति ! 2-- लकड़ी पर आसन साधना -- आदि व्याधि रोग की प्राप्ति ! 3-- शुद्ध बस्त्रासन -- स्त्री की प्राप्ति 4-- बिना आसन --- केवल भूमि पर बैठ कर मन्त्र सिद्ध नहीँ होते ! 5- तृणासन पर साधना -- इससे कीर्ति की हानि होती है ! 6-- बँशासन पर साधना -- दरिद्रता होती है ----------------------------------------------------------------
------------ श्री नाथ पँचमात्रा -जाप ----------- सत नमो आदेश .गुरु जी को आदेश .ॐ गुरुजी .जाप जपें जाप अलख जगाबे .योगी अवधूत सेली सिँगी मेखला पाताल लोक की योग ,युगत निरझम कलम स्वासा ,मुद्रा चक्र काया ,खप्पर त्रिशूल झोली झंडा हाल मतँगा हाथ का कंगन पाव का लंगर भुज का बाजूबंद धुरी कटारी भगवा कँथा भाखडा माथे लाल सिंदूर का तिलक शैली सिँगी ,रक्त गाति ,भगवा साफ़ा ,भभूति सिर जटा सिर की टोपी ,सिर का बाल चक्कर ,त्रिशूल फावड़ी चिमटन ,गोरख धँधा ,तुम्बी चल छडी तू क्या पूछे अलष रुप पुरुष की वात ,मैं योगी अवधूत तीन युगों से न्यारा खेलूं मैं योगी अवधूत आवो सिद्धों बैठो सिद्धों बैठे जंगल की हिरणी .हम क्यों बैठे योगी अवधूत ,तीन युगों से न्यारा खेलूं योगी अवधूत श्री गोरख अवधूत . श्री नाथ जी को आदेश आदेश आदेश -----------------------------------------------------------
----------गुरु गोरखनाथ कुण्डली ------------ सत नमो आदेश . गुरुजी को आदेश . ॐ गुरुजी . प्रथमे बोलिये श्री शम्भू जती गुरु गोरखनाथ जी देव . विष्णु देव , महेश्वर देव , ब्रह्मा देव , शक्ति देव , आकाशे, पाताले ,शेष अनन्त कोटि सिद्धों पर करलो आदेश . आरती दर्शन नाम तुम्हारे - आप तरे जगत को तारे , ज्ञान खड्ग ले काल सँहारे . जब हाँक पे डंका बजाबे ,खेचरी भूचरि देव और दानव मारे . कार के मारे गोरख जपे अनघड़ काया ,सोलह कला सम्पूर्ण माला घट पिंड की रक्षा करे श्री शम्भू जती गुरु गोरखनाथ जी वाला . अमरी धो धो पीबो खीर अमर हो देही वज्र हो शरीर . ॐ गुरुजी मीन राय को करलो आदेश .गौरी शंकर को करलो आदेश .पश्चिम देश आई उमा देवी आगे बेठी मीन मत्स्येन्द्र गोरख योगी .जब देवी ने किया आदेश ,नही लिया आदेश नही दिया उपदेश .जब देवी क्रोध में आई खंजन बाँध हृदय को गई .नाथ निरंजन सही कर लई .नव वे द्वारे ताडी लाई - दसवें द्वार ब्रह्म अग्नि पर जाली .जलने लगी तब खड़ी पछताई .राख राख हो श्री शम्भू जती गुरु गोरखनाथ जी राख तुम्हारी हुन्गी चेली जगत हुन्गी माई .माई कहे ता भोचर सा तन का कपट हार शृंगार गहू शिव शंकर स्वामी jiजी तुम्हारा कौनसा विचार है .हम कुछ नही जाने देवी जी .अपना घड़ा आप ही जानो --ईश्वर गोरा दोनो मिला करे .हाटी ईश्वर जी गए सातवें पाताल वाले गोरख का अनन्त अपार काया ना माया न छाया कली विच कहा है .हे देवी जी हम को गुरु मुख दिया तुमको ब्रह्मा मुख दिया ,अनन्त कोट सिद्धों में दंड कमंडल मीन आप ही छू गुरुमुखी चीन्ह .घटोघटो गोरख काँचे कुबे भर न पानी .घटों गोरख जागँता पाप के पहरे सोबँता ,धर्म के पहरे जागँता ,घटोघटो गोरख भये उदास पंडित के हम गुरु ,मूरख के हम दास .घटोघटो गोरख योग पुकारे ,अमर धन कोई बिरला ही जाने .इन्द्र देव अलील गुफा आये ,सूर्या सरीखा तपी नही ,चंद्रमा सरीखा शीतल नही .इन्द्र राजा बरसँते ,धरती माता सुफल फलँते ,शिव दर्शनी योगी नित्य उठ ध्यान धरँते .. श्री नाथ जी गुरु जी को आदेश --------------------------------------------------------------
- धूनी पर धूप चेताने का मन्त्र --------- सत नमो आदेश ! गुरु जी को आदेश . ॐ गुरु जी . पानी का बूँद पवन का थम्भ जहाँ उपजा कल्प वृक्ष का कंध . कल्प वृक्ष ,वृक्ष की छाया जिसमें गुग्गुल धूप उपाया . जहाँ हुआ धूप का प्रकाश जब तिल घृतं ले किया बास . धूनी धूपिया अग्नि चढ़ाया . सिद्ध का मार्ग विरले पाया . उर्ध्वमुखी चढ़े अग्नीमुख जले होम धूप दीप वासना होयले . इक्कीस ब्रह्मांड तैतीस करोड़ देवी देवता को होम धूप दीप बास . सप्तमे पाताल नव कुली नाग बासुक कू होम धूप बास . श्री नाथ जी के चरण कमल पादुका को होम धूप बास . अलील अनाद धर्म राजा धर्म गुरु को होम धूप बास . धरती आकाश पवन पानी को होम धूप बास . चंद्र सूरज को होम धूप बास . तारा गृह नक्षत्र को होम धूप बास . नव नाथ चौरासी सिद्ध को होम धूप बास . थान मकान मठ मुकाम को होम धूप बास . अग्नि मुख धूप पवन मुख बास . वासना बासलो थापना थापलौ . जहाँ धूप तहां देव जहाँ देव तहां पूजा . अलखनिरँजन और नही दूजा . श्री नाथ जी गुरु जी को आदेश आदेश आदेश . ---------------------------------------------------------------------- । । जय श्री आदि नाथ जी । । । । । । । । । । । । । । । । । । ओह्म सोहं । । । । । । । । । । ॐकार ब्रह्म रुप है तन्त्र में इस के बिन्दु का अर्थ शिव है और बीज का अर्थ शक्ति है । पृथ्वी बीज का अर्थ शक्ति है । जिस शक्ति में पाँचों तत्त्व अपने बीजों सहित विद्यमान हैं । जिस में , लँ , बीज पृथ्वी का , बँ , बीज जल का , रँ बीज अग्नि का , यँ बीज वायु का , और हं बीज आकाश का और यह पाँचों बीज , ॐकार , से अभेद हैं । और घट पिंड और ब्रह्मांड पाँच तत्त्व से ही अभेद है । अत: ॐ से चिदरुपा शक्ति अभेद है । इनका शक्ति का सम्बन्ध परम्परा शक्ति से रहता है । यहाँ पीर आचार्य या उत्तराधिकारी का सम्बन्ध प्रणव के बाक्यार्थ से है , वही नाथ तत्त्व का सम्बन्ध प्रणव के लक्यार्थ से है , लख्यार्थ का सम्बन्ध महाबिन्दु से है , महाबिन्दु का सम्बन्ध परानाद से है , परानाद का सम्बन्ध ॐकार से है , ॐकार का सम्बन्ध ओह्म सोहं अजपा जाप से है । हमारे नाथ सिद्धों में ॐकार का प्रादुर्भाव " सो उ हं " से होता है और "सों उ हं " श्वास से बनता है । श्वास नाभि चक्र से बनता है और स्थूल प्राण क्रियाशील रहता है । जिस प्रकार भूख लगती है सूक्ष्म इच्छा प्रत्यक्ष भोजन करना स्थूल रुप है । प्राणी 21600 श्वास के ओम सोहं करता है । इसे हं सं बोलते हैं । हं हं करते श्वास आवाज़ करते बाहर निकलता है और सं सं करते श्वास भीतर आता है । इस हं सं के प्राणों को शरीर के अन्दर रोकने में अन्दर ॐ का प्राकत्य होता है । और ध्यान में एकाग्रता आती है । यह नाथ सिधान्त है । इसे महा विद्या कहते हैं । इस प्रकार ॐ गुरु जी ॐ सोहं तक रहस्य हुआ । आदेश आदेश आदेश ------------------------------------------------------------- । । ॐकार स्वरूपी योग माया पूजन । । । । ॐकार प्रणव से सात्विक , राजस , तामस गुण दर्शाते हैं । अर्थात - - - अ , उ , म - अर्थात ब्रह्माजी , विष्णुजी , महेश तीनो देव । ब्राह्मी , लक्ष्मी , गौरी तीनो शक्तियां । सृष्टि , स्थिति , प्रलय तीनो स्थिति । भूत , भविष्य , वर्तमान तीनो काल । प्रथम , उत्तम , मध्यम । तीन वेद ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद । तीन लोक स्वर्ग , पाताल , मृत्यु । तीन आनँद - आनँद , मुक्ति , मोक्ष । इत्यादि त्रिपुटी के योग से योग से ॐकार बनता है । किन्तु यह सभी ॐकार त्रिपुटी अर्धमात्रा जो शक्ति रुप में ॐकार के ऊपर [ ँ ] है उस अर्ध मात्रा शक्ति के बिना तथा उसके बिन्दी या बिन्द जो नाथ सिद्धों का योग बीज है इन के बिना ना ही ॐकार में पूर्णता है और ना ही उन त्रिगुन त्रिपुटीयों की पूर्णता है । अर्थात ॐकार के तीनो प्रणव अ , ऊ म ब्रह्मा , विष्णु , महेश या अन्य त्रिपुटी बिन्द रूपी योग या साधना किये बिना अर्ध मात्रा शक्ति को प्राप्त करके योग साधना पूर्ण कर उसे त्यागे बिना पूर्ण नहीँ हों सकते । अर्थात योग द्वारा योग शक्ति को प्रसन्न कर माया से विरक्त होकर मुक्ति को पाना यहीं ॐकार स्वरुपी योग माया पूजन है । ------------------------------------------------------------------
। । । । गुरु गोरखनाथ जी का ब्रह्म गायत्री । । सत नमो आदेश । गुरु जी को आदेश । ॐ गुरु जी । एक ॐ कार तेरा आधार तीन लोक में जय जय कार । श्री शम्भू जती गुरु गोरखनाथ जी करें विचार । ॐ गुरु जी पार ब्रह्म पार ब्रह्म ज्योति स्वरूप परम अद्वयन योगाचार्य भगवान श्री शम्भू जती गुरु गोरखनाथ जी के चरणों में ध्यान धराके जूँ सच्चिदानंद परमात्मा अपने माया गुणों का आश्रय लिया अनन्त रूपों का किया पसारा । भगवान रजोगुण भये प्रधान , ब्रह्माजी कहालो , सृष्टि रचना भई प्रमान । भगवान सत्वगुण भए प्रधान विष्णु नारायण कहालो , जगत का सारे भये पालन हार । भगवान तमोगुण भये प्रधान , रुद्र नाथ जी कहालो , जगत का सारे करते है संहार । भगवान भगवती का भया अवतार रुप धारण किया महान , दुर्गा , अम्बिका , चंडिका , कात्यायनी , गौरी , काली , हिन्गेश्वरि , शिवा भवानी , रुद्राणी ,घृजाणी , महाकाली , महालक्ष्मी , महासर्श्वती , त्रिपुर सुंदरी , तारा नाम शक्ति पुकारा । जहाँ भगवान वृष्टि बरसाये तहां इन्द्र देव कहालो । जहाँ भगवान लोकों को धार्या तहां शेष नाग अनन्त कहालो । जहाँ भगवान जगत के काल चक्र का करें प्रकाशा , तहां सूर्य नारायण कहालो । जहाँ भगवान धर्म अधर्म का किया न्याय तहां कहालो देव धर्म राज़ । प्राणियों को दण्ड देने से भगवान को कहालो यमराज़ । ॐ चार खानी , चार वाणी , चंदा सूरज पवन पानी नौ नाथ , चौरासी सिद्ध , भेष 12 पंथ , बारह राशि , सात बार , 27 नक्षत्र , नौ ग्रह , नौ खंड , नौ करण , नौ व्याकरण , चार वेद , चार उप वेद , 18 पुराण , 18 उप पुराण , खट दर्शन , 28 योग 10 मन , पाँच ज्ञान इंद्रिय , पाँच कर्म इंद्रिय , पाँच प्राण , मन बुद्धि , चित्त , अहंकार , शब्द , स्पर्श , रुप , रस , गंध पंचम मात्रा जागृति , स्वपन , सुसुप्ति , तुर्या , तुर्यातीत , विश्व , तेजश्व , प्राम्य , अन्नमय , प्राणमय , मनोमय , विज्ञानमय , आनँद मय , पंच कोश , षोडशकला , षोडशतिथि , अष्टबसुओं को लेकर भगवान विराट हिरण्यगर्भ धारण करालो । वही विश्वनाथ , वही तुंगनाथ , वही केदारनाथ कहालो । वही बदरीनाथ , वही त्रिलोकिनाथ वही मुक्ती नाथ कहालो । वही अमर नाथ वही भेरो नाथ वही गोरखनाथ कहालो । वही जालंधर नाथ वही मत्स्येन्द्रनाथ वही आदि नाथ कहालो , वही सत नाथ वही सन्तोष नाथ वही उदय नाथ कहालो कहालो । वही गज बेली गज कन्थण नाथ , वही चोरन्गी नाथ वही चौरासी सिद्ध , अनन्त कोट कहालो । वही राम , वही कृष्ण वही गोविन्द वही माधव कहालो । वही शिव वही शक्ति वही अर्धनारीश्वर कहालो । वही नारी वही नर वही नारायण कहालो । वही प्रकृति वही पुरुष वही जीव कहालो । वही ज्ञान बाण , वही वेग बान वही शक्तिमान कहालो । वही देवी वही देवता वही अनंता कहालो । वही साकार वही निराकार वही अनन्ताकार कहालो । श्री नाथ जी गुरु जी को आदेश
---------------------------------------आज गुरु गोरखनाथ जी की ज्ञान गोदड़ी ।
ॐ गुरु जी सत नमो आदेश । गुरु जी को आदेश । नव नाथ चौरासी सिद्धों को आदेश ।नाथ कहें दोनो कर जोड़ी , यह संशय मेटों प्रभू मोरी ।काया गोदडी का बिस्तारा तासे हों जीवन निस्तारा ।आदि पुरुष इच्छा उपजाई , इच्छा सखत निरंजन मांहि ।इच्छा ब्रह्मा , विष्णु , महेशा , इच्छा शारद गौरी गनेशा ।इच्छा से उपजा संसारा , पाँच तत्त्व गुण तीन पसारा ।अलष पुरुष जब किया बिचारा , लक्ष चौरासी धागा डाला ।पाँच तत्त्व की गुदड़ी बीनी , तीन गुणों से थाडी कीनी ।तामे जीव , ब्रह्म है माया , सत गुरु ऐसा खेल बनाया ।सीवन पाँच पच्चिसो लागे , काम , क्रोध , मद , मोह त्यागे ।अब काया गोदड़ी का बिसतारा , देखो सन्तों अगम्य अपारा ।चंद्र , सूर्य दो चंदोआ लागे , गुरु प्रताप से सोबत जागे ।शब्द शुई सुरिति का डोरा , ज्ञान का टोपा निरंजन ओढ़ा ।इस गोदड़ी की करि होशियारी दाग ना लागे देख बिचारी ।सुमति के साबुन सत गुरु धोई , कुमति के मैल को दारे खोई ।जिन गोदड़ी का किया बिचारा , उन को भेंट सिरजन हारा ।धीरज धूनी ध्यान धर आसन , जतकि कोफिन सत्य सिंहासन ।उक्ति कमंडल कर गहे लीना , प्रेम फावड़े सत गुरु चीना ।सेली शील विवेक की माला , दया की टोपी तन धर्म साला ।मेहर मतंगा मत वैशाखी , मृगछाला मन ही की राखी ।निष्ठा धोती पवन जनेऊ , अजपा जपें सो जाने भेउ ।रहे निरंतर सत गुरु दाया साधो की संगत से कुछ पाया ।लय की लकुति हृदय की झोली क्षमा खड़ाऊ पहिरि बहोरी ।मुक्ति मेखला सुकृत सुमरनि , प्रेम प्याला पीले मौनी ।दास कूबरी कलह निबारी , ममता कुत्ती को ललकारी ।यतन जंजीर बाँध जो राखे अगम्य अगोचर खिड़की लाखे ! ।बीतराग वैराग्य निधाना तत्त्व तिलक दिनो निरबाना ।गूर ग़म चकमक मन सम तुला ब्रह्म अग्नि प्रगट भई मूला ।संशय शोक सकल भ्रम जारे , पाँच पच्चिसो प्रगटे मारे ।दिल के दर्पण दुविधा धोई सो योगेश्वर पक्का होई ।सुन्न महल की फेरी देई अमृत रस की भिक्षा लेई ।सुख दुःख मेला जग का भावे त्रिवेणी के घात नहाबे ।तन मन खोज भया जब ज्ञाना तब लख पद पावे निर्बाना ।अष्ट कमल दल चक्र सूझे योगी आप आप में बूझे ।ईडा पिंगला के घर जाई सुशम्न नीर रहा ठठराई ।ॐ सोहं तत्त्व बिचारा बाँक नाल में किया सम्भारा ।मनसा मार्ग गगन चढ़ जाई , मानसरोवर बैठ नहाई ।छुट गई कलमश मिले अलेखा इन नैनो से अलख को देखा ।अहंकार अभिमान बिदारा घट में चौका किया उजियारा ।श्रिद्धा चँवर प्रीति की धुपा निष्ठा नाम गुरु का रूपा ।अनहद नाद नाम की पूजा ब्रह्म वैराग्य देव नहीँ दूजा । चित का चंदन तुलसीफूला हित का सम्पुट करले मुला ।गुदड़ी पहनी आप अलेखा जिसने चलाया प्रगट भेषा ।-----------------------------------------------स्थान वर्णन । । । । । । ।पहले मूलाधार वा स्वाधीष्टान इन दो चक्रों के बीच में योनी स्थान है ।यहीं काम रुप पीठ अर्थात मूलाधार कणिका में काम रुप पीठ है ।मूलाधार (गुदा )में जो चतुर्दल कमल विख्यात है इस के मध्य मेंत्रिकोणाकार योनी है । जिसकी वंदना समस्त जन करते हैं । यह पन्चाशत वर्णसे बनी हुई कामाख्या पीठ कहलाती है ।त्रिकोनाकार योनी में सुशुमना द्वार के सम्मुख स्वमभू नाम का जो महालिंगहै उस के सिर में मणि के समान देदिप्यमान बिम्ब है यहीं कुण्डलिनी ,जीबाधार , शरीराधार , , मोक्षद्वार है । इसे जो सम्यक प्रकार से जानता हैउसे योगविद कहते हैं ।मेढ़ू से नीचे मूलाधार कणिका में तपे हुये स्वर्ण के समान एवं विद्युत केसमान चमक दमक वाला जो त्रिकोण है वहीँ कालाग्नि का स्थान है ।इसी त्रिकोण विषय समाधि में अनन्त विश्व में व्याप्त होने वाली परमज्योति प्रकट होती है । वहीँ कालाग्नि का रुप है । जब योगी ध्यान , धारणा, समाधि द्वारा उक्त ज्योति देखने लगता है तो उसका जन्म मरण नहीँ होताअर्थात वह अमर हों जाता है ।स्वशब्द प्राण (हंस ) का बोधक है इसका आश्रय लिंगमूल में है । प्राण काअधिष्ठान होने में इसे ही मेढ़ू कहते हैं ।नाभि में एक कन्द है , जिससे सर्वांग ब्यापनी शिराये निकली हैं । जेसे दसनसें ऊपर को जो शब्द , रस , गंध , श्वास , जुमाई , क्षुधा , तृषा , डकार, नेत्रदृष्टि , धारणा इस दस कर्मों को अपने अपने स्थानों पर दीपन करतीहैं । तथा दस नसें नीचे को हैं जो बात , मूत्र , मल , शुक्र , अन्न , पान, रस को नीचे पहुँचाना इन का काम है । और चार जिनकी टेढ़ी गति है दोदाहिनी और दो बाई और होकर अगणित सूक्ष्म साखा बनकर सर्वांग में जाले कीतरह रोम रोम प्रति पूरित है । इन्ही के मुखों से प्रस्वेद देह के बाहररोमो में होकर आता है तथा उन्ही के मार्गों से लेप मर्दानादि पदार्थ भीतरप्रवेश करते हैं । इस प्रकार का नाभि कन्द जेसे सूत्र में मणि पिरोयारहता है ऐसे ही सुशुम्ना नाड़ी में पिरोया है । इसे नाभि मंडल स्थितिमणिपुर चक्र कहते हैं ।हृदय में द्वादस दल अनाहत चक्र है जिसमें तत्वातीत जीव है । गुणातीत होनेसे पाप पुण्य से भी परे है । परंतु जब तत्त्व की पहचान योग्याभ्यास सेहों जाये तो यह गुण जीव में आते हैं । बिना तत्त्व ज्ञान के जीव भ्रम मेंघूमता रहता है----------------------------------------------जय श्री आदि नाथ जी ।नव नाथ बोध । । । । । ।प्रश्न - - - - नव नाथ सिद्धों के स्वाद ?उत्तर - - - - ॐ आदि नाथ सर्व उत्तम स्वाद । उदय नाथ मधुर स्वाद । सत्यनाथ खारा स्वाद । सन्तोष नाथ तीखा स्वाद । अचल अचम्भे नाथ जी खट्टा स्वाद। गज बेली गजकन्थण नाथ मिल - बला स्वाद । सिद्ध चोरन्गी नाथ रसीला स्वाद। दादा मत्स्येन्द्रनाथ अनन्त स्वाद । श्री शम्भू जती गुरु गोरखनाथ अमृतस्वाद ।प्रश्न - - नव नाथ सिद्धों का स्वभाव ?उत्तर - - - ॐ कार आदि नाथ भोला स्वभाव । उदय नाथ बैठा स्वभाव । सत्य नाथजी शीतल स्वभाव । सन्तोष नाथ संतोषी स्वभाव । अचल अचम्भे नाथ चंचल स्वभाव। गज बेली गज कन्थद नाथ उभा स्वभाव । सिद्ध चोरन्गी नाथ शीतल स्वभाव ।मत्स्येन्द्रनाथ थगनी स्वभाव । श्री शम्भू जती गुरु गोरखनाथ उर्द्वस्वभाव ।प्रश्न - - - नव नाथ सिद्धों के कौन गुरु कौन देवता ?उत्तर - - ॐ कार आदि नाथ ॐ कार गुरु परमात्मा देवता । उदय नाथ मन गुरुवाचा देवता । सत्य नाथ चन्द्र गुरु बुद्धि देवता । सन्तोष नाथ सूर्य गुरुअनादि देवता । अचल अचम्भे नाथ अवकाश गुरु ॐ कार देवता । गजबेली गज कन्थदनाथ गोरख गुरु अबिगत देवता । सिद्ध चोरन्गी गोरख गुरु अबिगत देवता ।मत्स्येन्द्रनाथ शिव गुरु शक्ति देवता । श्री शम्भू जती गुरु गोरखनाथमत्स्येन्द्र गुरु परमात्मा देवता ।प्रश्न - - - नव नाथ सिद्धों की भरिज्या ?उत्तर - - - ॐ कार आदि नाथ जी भरिज्या शून्य निरंकार । उदय नाथ कीभरिज्या आसा धनबन्ती । सत्य नाथ जी भरिज्या मनसा चोरती । सन्तोष नाथ जीभरिज्या कल्पना चांडाली । अचल अचम्भे नाथ जी भरिज्या चिंता डाकिनि ।गजबेली गजकन्थर नाथ जी भरिज्या शंका शिलबन्ती । सिद्ध चोरन्गी नाथ जीभरिज्या सोलह कला शृंगारी । मत्स्येन्द्रनाथ जी भरिज्या माया ठगनी । श्रीशम्भू जती गुरु गोरखनाथ जी भरिज्या जोग कुण्डलिनी ।------------------------------------गुरु गोरखनाथ , गणेशजी ज्ञान गोष्टी । । ।श्री गुरु जीप्रश्न - - स्वामी जी कहाँ से आये ? आप का नाम क्या है ?उत्तर - - अवधू - निरंतर से आये , और योगी हम्हारा नाम ।प्रश्न - - स्वामी जी केसे कर जानिये ? केसे कर मानिये ?उत्तर - - अवधू - रहत कर जानिये , शब्द कर प्रमाणिये ।प्रश्न - - - रहत किस को बोलिये ?उत्तर - - - रहत बोलिये त्रि गुण रहित शब्द बोलिये सब से विवर्जित ।प्रश्न - - विवर्जित ?उत्तर - - सूक्ष्म , त्रि गुण बोलिये सत , रज , तमसत गुणी बोलिये विष्णु , रज गुणी ब्रह्मा जी , तमो गुणी महादेव ।प्रश्न - - सत , रज , तम किसे कहिये ? और सूक्ष्म किसे कहते हैं ?उत्तर - - सूक्ष्म कहिये दृष्टि ना देखे , मुषट ना आवै । सत गुण बोलियेपवन , रजो गुण बोलिये पानी , त्रिगुन तामस रूपी ।पाँच तत्त्व पच्चीस प्रकृति एता नाम शरीर का ।पाँच तत्त्व - पृथ्वी , जल , अग्नि , वायु और आकाश ।पाँच तत्त्वों की पच्चीस प्रकृति ।1.पृथ्वी - - अस्थि , माँस , त्वचा , नाड़ी और रोम2. जल - - - लार , मूत्र , पसीना , वीर्य और लहू ।3. अग्नि - - क्षुधा , तृष्णा , निन्द्रा , आलस , क्रोध 4. वायु - - -धाबन , आन्कुनचन , चलन , बलन , प्रशारन ।5. आकाश - -माया , मोह , लज्जा , राग और द्वेष पाँचों तत्त्वों के रंग ?1. पृथ्वी का पीला2. जल का श्वेत3.अग्नि का लाल4. वायु का धूम्र5. आकाश का नीला (श्याम )पाँचों तत्त्वों के स्वभावपृथ्वी का बैठा स्वभावजल का शीतल स्वभावअग्नि का दाह स्वभाववायु का चंचल स्वभावआकाश का गुम स्वभावपाँचों तत्त्वों के स्वादपृथ्वी का मीठा स्वादजल का खारा स्वादअग्नि का तीखा स्वादवायु का खट्टा स्वादआकाश का फीका स्वादप्रश्न - - - - - - - - पाँचों तत्त्वों की भार्या - - ?पृथ्वी की आशा धनबन्तिजल की मनसा चोरटीवायु की चिंता डाकिनिअग्नि की कल्पना चांडालीआकाश की संख्या शीलवन्तीप्रश्न - - पाँचों तत्त्वों के गुरु ?पृथ्वी के गुरु मन देवता वाचा स्वरूपीजल के गुरु चन्द्र देवता बुद्धि स्वरूपीअग्नि के गुरु सूर्य तेज स्वरूपीवायु का गुरु विष्णु देवता आनाद स्वरूपीआकाश का गुरु श्री गोरखनाथ अबिगति स्वरूपीप्रश्न - - पाँचों तत्त्वों के गुण - - ?उत्तर - - पृथ्वी का मूल गुणजल का वृद्धि गुणतेज का रुप गुणवायु का प्रमल गुणआकाश का मैथुन गुणप्रश्न - - पाँचों तत्त्वों के द्वार , आहार , व्यवहार , और निहार ? कोनकोन से हैं ?उत्तर - -पृथ्वी का उदर घर , गुदा द्वार , खाई सो आहार , अजरी बजरी निहार, लोभ लालच व्यवहार ।जल का ललाट घर इंद्रिय द्वार , स्त्रीया आहार , बिन्दु निहार , मैथुन व्यवहार ।अग्नि का पित्ता घर , चक्षु द्वार , दृष्टि देखे सो आहार , अदृष्ट निहार व्यवहार ।वायु का नाभि घर , नाशिका द्वार , वासना आहार , निर्बासना निहार , मिथ्याव्यवहार ।आकाश का ब्रह्मांड घर श्रवण द्वार , नाद आहार , जिह्वा शब्द निहार दम्भपाखंड , व्यवहार ।प्रश्न - - पाँच तत्त्व कहाँ से उत्पन्न हुए और कहाँ जा समाये ?उत्तर - -अवधू परम तत्त्व से उत्पन भये अबिगति जा समाये ।अवगत से उत्पन ॐकार , ॐ से उत्पन महा तत्त्व । महा तत्त्व से आकास तत्त्व । आकाश तत्त्वसे वायु तत्त्व । वायु तत्त्व से तेज तत्त्व । तेज तत्त्व से जल तत्त्व ।जल तत्त्व से पृथ्वी तत्त्व ।पृथ्वी तत्त्व को ग्रासन्ते जल तत्त्व , जल तत्त्वको ग्रासन्ते अग्नितत्त्व , अग्नि तत्त्व को ग्रासन्ते वायु तत्त्व । वायु तत्त्व कोग्रासन्ते आकाश तत्त्व , आकाश तत्त्व को ग्रासन्ते महा तत्त्व , महातत्त्व को ग्रासन्ते ॐ कार , ॐ कार को ग्रासन्ते अबिगत देवता ।ना आवते ना जाबते निरंजन देवता पाणी का जामन जिंदा अग्नि kका पुट पवन काखम्भा सुरत निरंत का सोध्या शून्य में समाया अबगति स्वरूपी ।---------------------------------------------------ओह्म शोह्म रहश्य । । ।ॐ कार ब्रह्म रुप है तन्त्र में इस के बिन्दु का अर्थ शिव है और बीज काअर्थ शक्ति है पृथ्वी बीज का अर्थ शक्ति है । जिस पृथ्वी में पाँचोंतत्त्व अपने बीजों सहित विद्यमान हैं जिस में लँ बीज पृथ्वी का , वँ बीजजल का , रँ बीज अग्नि का , यँ बीज वायु का , हं आकाश का बीज , और यहपाँचों बीज ॐ कार से अभेद हैं । और घट पिंड और ब्रह्मांड पाँच तत्त्व सेअभेद है । अत: ॐ से चिदरुपा शक्ति अभेद है ।इस चिदरुपा शक्ति का योग माया पूजन में शक्ति का सम्बन्ध परम्परा शक्तिसे रहता है । यहाँ पीर आचार्य या उत्तराधिकारी का सम्बन्ध प्रणव केबाक्यार्थ से है । और नाथ तत्त्व का सम्बन्ध प्रणव के लक्ष्यारथ से है औरलक्यार्थ का सम्बन्ध महा बिन्दु से है और महा बिन्दु का सम्बन्ध परानादसे है , परानाद का सम्बन्ध ॐ कार से है , ॐ कार का सम्बन्ध ओह्म सोहंअजपा मन्त्र से है ।हम्हारे नाथ सिद्धों में ॐ कार का प्रादुर्भाव " सों s हं "से होता है औरॐ s हं "श्वास से बनता है । श्वास नाभि चक्र से बनता है और स्थूल प्राणक्रिया शील रहता हैजिस प्रकार भूख लगती है सूक्ष्म इच्छा औरप्रत्यक्ष भोजन करना स्थूल रुप ।प्राणी रात दिन में 21600 श्वास के ओँ सोहं करता है । इसे हंस बोलते हैंहं हं आवाज़ से श्वास बाहर और सं सं आवाज़ से प्राण अन्दर जाता है । इसहं सं के प्राणों को अन्दर रोकने से अन्दर ॐ का प्राकत्य होता है औरध्यान में एकाग्रता आती है । यह नाथ सिधान्त है जिसे प्राण विद्या या महाविद्या कहते । इसके द्वारा कुण्डलिनी मूलाधार से जागृत होकर स्वाधिश्थान, मणिपुर , अनहद , विशुद्ध , आज्ञा , सहस्रागार तक प्राण विद्या क्रियाशील होकर महाविद्या हों जाती है ।-------------------------------------------ॐ कार रहस्य । । । । । । । ।ॐ कार बीज महा बीज है । उस में अकार ब्रह्म वाचक राज़ गुणी है उ कारविष्णु वाचक सत्य गुणी प्रणव है । , म , कार रुद्र वाचक तामस गुणी प्रणवहै । इन कि अर्ध मात्रा शक्ति की योग माया की है । और अर्ध मात्रा काबिन्दु श्री नाथ जी का योग वाचक है । इस प्रकार ॐ कार पंच देबात्मक इसेपंच ईश्वर , पंच महेश्वर कहा जाता है । इस प्रकार ॐ कार के प्रणव द्वाराब्रह्म जानने का साधन है कि जो है सत चित ब्रह्म ही है । इस का जप करनेसे शब्द ब्रह्म से पर ब्रह्म तक जाकर मुक्ति प्राप्त होती है । इस शब्दब्रह्म को नाद ब्रह्म , परा नाद , परा वाणी , कहते हैं जो मूलाधार चक्रमें स्थिति है । समाधि अवस्था में इस का अनुभव होता है । यहाँ नाथचिदानन्द स्वरूप और उस की शक्ति कुण्डलिनी को कहा है । जहाँ छः चक्रजाग्रति होती है । योगी सभी विकल्प छोड़ कर निर्बिकल्प समाधि में जाता हैयह समाधि परा वाड़ी से भी परे है । जब तक ॐ स्वरूप परावाणी में नही उतरतातब तक निर्बिकल्प समाधि लगाना कठिन है अत: इस परा वाणी को नाथ जी मानतेहैं । जिसे माहेश्वरी कहा है ।--------------------------------------------------------घट पिंड मेंचक्र - - - हम्हारे शरीर में कुल 28 चक्र होते हैं जिस में मुख्य षट चक्रहैं ।1.- मूलाधार चक्र - - गुदा स्थान चार पंखुरी का कमल , गणेशजी योगी सिद्धिबुद्धि21600 अजपा जाप ।2.- महापद्म चक्र - - बिन्दु स्थान (गुदा लिंग के बीच )जहाँ नील नाथ जीयोगी कुण्डलिनी शक्ति । अनन्त श्वास ।3.- स्वाधीषठान चक्र - - लिंग स्थान छः पंखुरी का कमल , सत्य नाथ ब्रह्माजी योगी सावित्री शक्ति ।4.- सुशुम्ना चक्र - - सुशुम्ना स्थान छः पंखुरी का कमल , तहां गँगाजोगणि , शती शक्ति ।5.- - गर्भ चक्र - - गर्भ स्थान सप्त पंखुरी का कमल , अग्नि देवता ।6.- कुण्डलिनी चक्र - - कटि स्थान अष्ट पंखुरी का कमल यहाँ अग्नि देवता योगी ।7.- मणिपुर चक्र - - नाभि स्थान दस पंखुरी का कमल , सन्तोष नाथ विष्णुजीयोगी लक्ष्मी शक्ति8.- लिंग चक्र - - लिंग स्थान तहां रुद्र देवता9.- अनहद चक्र - - हृदय स्थान 12 पंखुरी का कमल तहां महा देव योगी श्वेतवर्ण उमा शक्ति ।10.- बिशुद्धि चक्र - - कंठ स्थान 16 पंखुरी का कमल तहां हंस नाथ जी योगीअविद्या शक्ति ।11.- प्राण चक्र - - गल स्थान 32 पंखुरी का कमल , तहां प्राण नाथ जी योगीऔर परम शक्ति12.- अबल चक्र - - त्रि ग्रंथि स्थान ( ब्रह्मा , विष्णु , महेश मिलनस्थान )बत्तीस पंखुरी का कमल यहाँ ब्रह्मा , विष्णु , महादेव त्रि देवयोगी त्रिय शक्ति अरुण छोत प्रभा का वर्ण ।13.- चिबुक चक्र - - चिबुक स्थान 34 पंखुरी का कमल , प्राण देवता योगीसरस्वती शक्ति ।14.- बलवान चक्र - - नासिका स्थान (ईडा , पिंगला , सुशुम्ना मिलन ) त्रिपंखुरी का कमल , प्रणव नाथ योगी , सुशुम्ना शक्ति ।15.- कर्ण मूल चक्र - - कान तले स्थान , 36 पंखुरी का कमल जहाँ नाद देवतायोगी श्रुति शक्ति ।16.- आज्ञा चक्र भ्रू स्थान द्वि पंखुरी का कमल जहाँ आदि नाथ जी योगी ,ज्ञान शक्ति ।17.- त्रिवेणी चक्र - - भ्रुमध्य के ऊपर , 26 पंखुरी का कमल जहाँ आकासदेवता योगी ।18.- चंद्र चक्र - - भाल स्थान 32 पंखुरी का कमल , तहां चन्द्र देवतायोगी अमृत आमद शक्ति19.- अमृत चक्र - - भाल के ऊपरी स्थान चन्द्र देवता योगी20.- ब्रह्म द्वार चक्र - - भाल के ऊपरी स्थान 100 पंखुरी का कमल तहांब्रह्म नाथ योगी21.- अकुल चक्र - - भाल के ऊपरी स्थान छः सौ पंखुरी का कमल जहाँ बासुकीनाथ देवता ।22.- ब्रह्म रंध्र गुफा चक्र - - मुर्धास्थान सहत्र पंखुरी का कमल , गुरुगोरखनाथ जी योगी अनुपम योगी ।23.- तालु चक्र भँवर गुफा - - (उर्धरन्ध्र ) तालिका स्थान 64 पंखुरी काकमल , तहां श्री शंभू जती गुरु गोरखनाथ जी योगी । सिद्धान्त शक्ति ।24.- अलक्ष (बल )चक्र - - भ्रमर गुफा स्थान एक हजार पंखुरी का कमल , यहाँअलक्ष नाथ योगी अद्भुत बरनी महा माया शक्ति , महा विष्णु का स्थान ।25.- पुण्यगार चक्र - - भ्रमर गुफा ऊपरी स्थान एक हजार पंखुरी का कमलजहाँ अकल नाथ जी योगी अकलेश्वरी शक्ति ।26.- कोल हाट परम शून्य चक्र - - शिखा मंडल स्थान अनन्त नाथ योगी , अनन्तशक्ति प्रकास ।27.- वज्र दण्ड चक्र - - निरालम्ब स्थान , तहां महा विशाल तेज पुंज प्रभा ।28.- असंख्य चक्र - - निरालम्ब स्थान असंख पंखुरी का कमल यहाँ असंख्ययोगी , असंख्य बरनी असंख्य शक्ति , शुद्ध प्रकासी , असंख्य गुरु उच्चस्थान ।-----------------------------------------------जय श्री आदि नाथ जी । ।ओह्म सोहं - - - ॐ कार ब्रह्म रुप है तन्त्र में इस के बिन्दु का अर्थशिव है । पृथ्वी बीज का अर्थ शक्ति है । जिस पृथ्वी में पाँचों तत्त्वअपने बीज सहित विद्यमान हैं , जिस में लँ बीज पृथ्वी का , वँ बीज जल का ,रँ बीज अग्नि का , यँ बीज वायु का और हं बीज आकाश का और ये पाँचों बीज ॐकार से अभेद हैं । और घट , पिंड और ब्रह्मांड पाँच तत्त्व से ही अभेद है। अत: ॐ से चिद रूपा शक्ति अभेद है । शक्ति का सम्बंध परम्परा शक्ति सेरहता है । यहाँ पीर आचार्य का सम्बंध प्रणव के बाक्यार्थ से है । नाथतत्त्व का सम्बन्ध प्रणव के लक्यार्थ से है , लक्ष्यारथ का सम्बन्ध , महाबिन्दु से है , महा बिन्दु का सम्बन्ध परा नाद से है , परा नाद कासम्बन्ध ॐ कार से है , ॐ कार का सम्बन्ध ओह्म सोहं अजपा मन्त्र से है ।
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भस्म गायत्री - - - - - - - - - - - - ॐ गुरुजी बभूत माता बभूत पिता , बभूत तरण तारणी , । मानुस से देवता करें बभूत कष्ट निवारणी । सो भस्मति माता जहाँ पाई वही रमाई आदि के योगी अनाद की बभूत सत के जाती धर्म का पुत । अमृत झरे धरती फरे , सो फल मात्रा गायत्री चर । गायत्री माता गोबरी करि सूरज मुख सुखी अगिन मुख ज़री । अष्ट टंक बभूत नव टंक पाड़ी , ईश्वर आणि पार्वती छाणी सो भसमति हस्तक लें मस्तक चढ़ी । चढ़ी बभूत दिल हुआ पाक , अलख निरंजन आप ही आप । श्री गुरु जी आदेश इसके बाद योगेश्वर भगवा बाना पहनते हैं
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भगवा बाना मन्त्र से भगवा बाना पहनती हैं । मंत्र है । ॐ गुरु जी ॐ सोहं का धुन्धुकारा शिव शक्ति ने किया पसारा , नख से चीर भग बनया - - रक्त रुप से भगवा आया । अलख पुरुष ने धारण किया पीछे सिद्धों का दिना । आओ सिद्धों धरो ध्यान , भगवा मन्त्र भया प्रणाम । ॐ गुरु जी नाथ जी को आदेश आदेश
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