Goraksha Gayatri Mantra |
Ganesh Gayatri Mantra
Pran Gayatri Mantra
Kalastra Mantra
Dasmahavidya Mantra Jap
Dasmahavidya Mantra Jap |
प्रथम ज्योति महाकाली प्रगटली |
(महाकाली)
(महाकाली)
ॐ निरन्जन निराकार अवगत पुरुष तत सार, तत सार मध्ये ज्योत ज्योत मध्ये परम ज्योत, परम ज्योत मध्ये उत्पन्न भई, माता शम्भु शिवानी काली, ओ काली काली महाकाली, कृष्ण वर्णी, शव वाहनी, रुद्र की पोषणी, हाथ खप्पर खडंग धारी, गले मुण्डमाल हंस मुखी | जिह्वा ज्वाला दन्त काली | मद्य मांस कारी श्मशान की रानी | मांस खाये रक्त - पी - पावे | भस्मन्ति माई जहां पर पाई तहां लगाई | सत की नाती धर्म की बेटी इन्द्र की साली काल की काली जोग की जोगिन, नागों की नागिन मन माने तो संग रमाई नहीं तो श्मशान फिरे अकेली ४ वीर अष्ट भैरी, घोर काली अघोर काली अजर बजर अमर काली भख जून निर्भय काली बला भख, दुष्ट को भख, काल भख पापी पाखण्डी को भख जती सती को रख, ओं काली तुम बाला ना वृद्धा, देव न दानव, नर या नारी देवीजी तुम तो हो परब्रह्मा काली |
क्रीं क्रीं क्रीं हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं दक्षिणे हूँ हूँ ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं स्वाहा,
द्वितीय ज्योति तारा त्रिकुटा तोतला प्रगटी |
(तारा)
(तारा)
ॐ आदि योग अनादि माया जहां पर ब्रह्माण्ड उत्पन्न भया | ब्रह्माण्ड समाया आकाश मण्डल तारा त्रिकुटा तोतला माता तीनों बसै ब्रह्म कपालि, जहां पर ब्रह्मा विष्णु महेश उत्पत्ति, सूरज मुख तपे चंद्र मुख अमिरस पीवे, अग्नि मुख जले, आद कुंवारी हाथ खङग गल मुण्ड माल, मुर्दा मार ऊपर खड़ी देवी तारा | नीली काया पीली जटा, काली दन्त जिह्वा दबाया | घोर तारा अघोर तारा, दूध पूत का भण्डार भरा | पंच मुख करे हा हा ऽ:ऽ:कारा, डांकनी शाकिनी भूत पलिता सौ सौ कोस दूर भगाया | चंडी तारा फिरे ब्रह्मांडी तुम तो हों तीन लोक की जननी |
ॐ ह्रीं श्रीं फट्, ओं ऐं ह्रीं श्रीं हूं फट् |
तृतीय ज्योति त्रिपुर सुन्दरी प्रगटी |
(षोडशी - त्रिपुर सुन्दरी)
(षोडशी - त्रिपुर सुन्दरी)
ॐ निरन्जन निराकार अवधू मूल द्वार में बन्ध लगाई पवन पलटे गगन समाई, ज्योति मध्ये ज्योत ले स्थिर हो भई ॐ मध्या: उत्पन्न भई उग्र त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति आवो शिवघर बैठो, मन उनमन, बुध सिद्ध चित्त में भया नाद | तीनों एक त्रिपुर सुन्दरी भया प्रकाश | हाथ चाप शर धर एक हाथ अंकुश | त्रिनेत्रा अभय मुद्रा योग भोग की मोक्षदायिनी | इडा पिंगला सुषुम्ना देवी नागन जोगन त्रिपुर सुन्दरी | उग्र बाला, रुद्र बाला तीनों ब्रह्मपुरी में भया उजियाला | योगी के घर जोगन बाला, ब्रह्मा विष्णु शिव की माता |
श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ह्रीं श्रीं कं एईल
ह्रीं हंस कहल ह्रीं सकल ह्रीं सो:
ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं
ह्रीं हंस कहल ह्रीं सकल ह्रीं सो:
ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं
चतुर्थ ज्योति भुवनेश्वरी प्रगटी |
(भुवनेश्वरी)
(भुवनेश्वरी)
ॐ आदि ज्योत आनादि ज्योत, ज्योत मध्ये परम ज्योत - परम ज्योत मध्ये शिव गायत्री भई उत्पन्न, ॐ प्रात: समय उत्पन्न भई देवी भुवनेश्वरी | बाला सुन्दरी कर धर वर पाशांकुश अन्न्पुर्णी दुधपूत बल दे बालका ऋद्धि सिद्धि भण्डार भरे, बालकाना बल दे जोगी को अमर काया | १४ भुवन का राजपाट संभाला कटे रोग योगी का, दुष्ट को मुष्ट, काल कन्टक मार | योगी बनखण्ड वासा, सदा संग रहे भुवनेश्वरी माता |
ह्रीं
पंचम ज्योति छिन्नमस्ता प्रगटी |
(छिन्नमस्ता)
(छिन्नमस्ता)
सत का धर्म सत की काया, ब्रह्म अग्नि में योग जमाया | काया तपाये जोगी (शिव गोरख) बैठा, नाभ कमल पर छिन्नमस्ता, चन्द्र सूर में उपजी सुषुम्नी देवी, त्रिकुटी महल में फिरे बाला सुन्दरी, तन का मुन्डा हाथ में लीन्हा, दाहिने हाथ में खप्पर धार्या | पी पी पीवे रक्त, बरसे त्रिकुट मस्तक पर अग्नि प्रजाली, श्वेत वर्णी मुक्त केशा कैची धारी | देवी उमा की शक्ति छाया, प्रलयी खाये सृष्टि सारी | चण्डी, चण्डी फिरे ब्रह्माण्डी भख भख बाला भख दुष्ट को मुष्ठ जाती, सती को रख, योगी घर जोगन बैठी, श्री शम्भुजती गोरखनाथ जी ने भाखी | छिन्नमस्ता जपो जाप, पाप कन्ट्न्ते आपो आप जो जोगी करे सुमिरण पाप पुण्य से न्यारा रहे | काल ना खाये |
श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं वज्र वैरो चनीये हूँ हूँ फट् स्वाह: |
षष्टम् ज्योति भैरवी प्रगटी |
(भैरवी)
(भैरवी)
ॐ सती भैरवी भैरो काल यम जाने यम भूपाल तीन नेत्र तारा त्रिकुटी, गले में माला मुण्डन की | अभय मुद्रा पीये रुधिर नाशवन्ती ! काला खप्पर हाथ खन्जर, कालापीर धर्म धूप खेवन्ते वासना गई सातवे पाताल, सातवे पाताल मध्ये परमतत्व परमतत्व में जोत, जोत में परम जोत, परम जोत में भई उत्पन्न काल भैरवी, त्रिपुर भैरवी, समपत प्रदा भैरवी, कैलेश भैरवी, सिद्धा भैरवी, विध्वंसिनि भैरवी, चैतन्य भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, षटकुटा भैरवी, नित्या भैरवी | जपा अजपा गोरक्ष जपन्ती यही मंत्र मत्स्येन्द्रनाथ जी को सदा शिव ने कहायी | ऋद्ध फूरो सिद्ध फूरो सत श्री शम्भुजती गुरु गोरक्षनाथ जी अनन्त कोटि सिद्धा ले उतरेगी काल के पार, भैरवी भैरवी खड़ी जिन शीश पर, दूर हाटे काल जन्जाल भैरवी अमंत्र बैकुण्ठ वासा | अमर लोक में हुवा निवासा |
"ॐ हस्त्रो हस्कलरो हस्त्रो:" |
सप्तम ज्योति धूमावती प्रगटी |
(धूमावती)
(धूमावती)
ॐ पाताल निरन्जन निराकार, आकाश मण्डल धुन्धुकार, आकाश दिशा से कौन आई, कौन रथ कौन असवार, आकाश दिशा से धूमावंती आई, काक ध्वजा का रथ अस्वार थरै धरत्री थरै आकाश, विधवा रुप लम्बे हाथ, लम्बी नाक कुटिल नेत्र दुष्टा स्वभाव, डमरु बाजे भद्रकाली, क्लेश कलह कालरात्रि | डंका डंकनी काल किट किटा हास्य करी | जीव रक्षन्ते जीव भक्षन्ते जाया जीया आकाश तेरा होये | धूमावन्तीपुरी में वास, न होती देवी न देव तहाँ न होती पूजा न पाती तहाँ न होती जात न जाती तब आये श्री शम्भुजती गुरु गोरक्षनाथ आप भयी अतीत |
ॐ धूं: धूं: धूमावती फट् स्वाह: |
अष्ठम ज्योति बगलामुखी प्रगटी |
(बगलामुखी)
(बगलामुखी)
ॐ सौ सौ सुता समुन्दर टापू, टापू में थापा सिंहासन पीला | सिंहासन पीले ऊपर कौन बैसे सिंहासन पीला ऊपर बगलामुखी बैसे, बगलामुखी के कौन संगी कौन साथी | कच्ची बच्ची काक - कुतीया - स्वान चिड़िया, ॐ बगला बाला हाथ मुग्दर मार, शत्रु ह्रदय पर स्वार तिसकी जिव्हा खिच्चै बाला | बगलामुखी मरणी करणी उच्चाटन धरणी, अनन्त कोटि सिद्धों ने मानी ॐ बगलामुखी रमे ब्रह्माण्डी मण्डे चन्द्र्सूर फिरे खण्डे खण्डे | बाला बगलामुखी नमो नमस्कार |
ॐ हृलीं ब्रह्मास्त्रायैं विदमहे स्तम्भनबाणायै
धीमहि तन्नो बगला प्रचोदयात्
धीमहि तन्नो बगला प्रचोदयात्
नवमी ज्योति मातंगी प्रगटी |
(मातंगी)
(मातंगी)
ॐ गुरूजी शून्य शून्य महाशून्य, महाशून्य में ओंकार ॐकार में शिवम् शिवम् में शक्ति - शक्ति अपन्ते उहज आपो आपना, सुभय में धाम कमल में विश्राम, आसन बैठी, सिंहासन बैठी पूजा पूजो मातंगी बाला, शीश पर शशी अमिरस प्याला हाथ खड्ग नीली काया | बल्ला पर अस्वारी उग्र उन्मत मुद्राधारी, उद गुग्गुल पाण सुपारी, खीरे खाण्डे मद्य मांसे घृत कुण्डे सर्वांगधारी | बुन्द मात्रेन कडवा प्याला, मातंगी माता तृप्यन्ते तृप्यन्ते | ॐ मातंगी सुन्दरी, रुपवंती, कामदेवी, धनवंती, धनदाती, अन्नपूर्णी अन्न्दाती, मातंगी जाप मंत्र जपे काल का तुम काल को खाये | तिसकी रक्षा शम्भुजती गुरु गोरक्षनाथ जी करे |
ॐ ह्री क्लीं हूँ मातंग्यै फट् स्वाहा |
दसवीं ज्योति कमला प्रगटी |
(कमला)
(कमला)
ॐ अयोनी शंकर ॐकार रुप, कमला देवी सती पार्वती का स्वरुप | हाथ में सोने का कलश मुख से अभय मुद्रा | श्वेत वर्ण सेवा पूजा करे, नारद इन्द्रा | देवी देवत्या ने किया जय ओंकार | कमला देवी पूजो केशर पान सुपारी, चकमक चीनी फतरी तिल गुग्गल सहस्त्र कमलों का किया हवन | कहे गोरख, मंत्र जपो जाप जपो ऋद्धि सिद्धि की पहचान गंगा गौरजा पार्वती जान | जिसकी तीन लोक में भया मान | कमला देवी के चरण कमल को आदेश |
ॐ ह्रीं क्लीं कमला देवी फट् स्वाह:
सुनो पार्वती हम मत्स्येन्द्र पूता, आदिनाथ नाती, हम शिव स्वरुप उलटी थापना थापी योगी का योग, दस विद्या शक्ति जानो, जिसका भेद शिव शंकर ही पायो | सिद्ध योग मरम जो जाने विरला तिसको प्रसन्न भयी महाकालिका | योगी योग नित्य करे प्रात: उसे वरद भुवनेश्वरी माता | सिद्धासन सिद्ध, भया श्मशानी तिसके संग बैठी बगलामुखी | जोगी खड दर्शन को कर जानी, खुल गया ताला ब्रह्माण्ड भैरवी | नाभी स्थाने उडीय्यान बांधी मनीपुर चक्र में बैठी, छिन्नमस्ता रानी | ॐकार ध्यान लाग्या त्रिकुटी, प्रगटी तारा बाला सुन्दरी | पाताल जोगन (कुण्डलिनी) गगन को चढ़ी, जहाँ पर बैठी त्रिपुर सुन्दरी | आलस मोड़े, निन्द्रा तोड़े तिसकी रक्षा देवी धूमावंती करें | हंसा जाये दसवें द्वारे देवी मातंगी का आवागमन खोजे | जो कमला देवी की धूनी चेताये तिसकी ऋद्धि सिद्धि से भण्डार भरे | जो दशविद्या का सुमिरण करे | पाप पुन्य से न्यारा रहे | योग अभ्यास से भये सिद्धा आवागमन निवराते | मन्त्र पढ़े सो नर अमर लोक में जायें | इतना दस महाविद्या मन्त्र जाप सम्पूर्ण भया | अनन्त कोट सिद्धों में, गोदावरी त्र्यम्बक क्षेत्र अनुपान शिला, अवलगढ़ पर्वत पर बैठ श्री शम्भुजती गुरु गोरक्षनाथ जी ने पढ़ कथ कर सुनाया श्री नाथजी गुरूजी को आदेश | आदेश |
ॐ शिव गोरक्ष योगी
Aadesh Gayatri Jaap
आदेश गायत्री जाप
ॐ नम आदेश गुरान्जीकूँ आदेश , ॐ आदेशाय विद्महे |
सोहं आदेशाय धीमहि नन्नो आदेशनाम प्रचोदयात् ||
सोहं आदेशाय धीमहि नन्नो आदेशनाम प्रचोदयात् ||
आदेश नाम गायत्री जाप उठन्ते अनुभवदेवा |
सप्त दीप नव खण्डमें आदेश नामकी सेवा ||
सप्त दीप नव खण्डमें आदेश नामकी सेवा ||
आदेश नाम अनघड़की काया ररंकारमें झंकार समाया |
सोहंकारसे ॐ उपाया वज्र शरीर अमर करी काया ||
सोहंकारसे ॐ उपाया वज्र शरीर अमर करी काया ||
आदेश नाम अमृत रसमेवा आद जुगाद करूँ मै सेवा |
आदेश नाम अनघड़जीने भाख्या लख चौरासी पड़ता राख्या ||
आदेश नाम अनघड़जीने भाख्या लख चौरासी पड़ता राख्या ||
आदेश नाम पाखान तराई आदेश नाम जपोरे भाई |
आदेश नाम जपन्ते देवा व्रह्मा विष्णु महेश्वर एवा ||
आदेश नाम जपन्ते देवा व्रह्मा विष्णु महेश्वर एवा ||
सिद्ध चौरासी नाथ नव जोगी आवा गमन कदे नहि भोगी |
राजा प्रजा जपै दिन राति दूध पूत घर संपति आति ||
राजा प्रजा जपै दिन राति दूध पूत घर संपति आति ||
आदेश नाम गायत्री सार जपो भौ उतरो पार |
आदेश नाम गायत्री उत्तम जपतांवार न कीजै जनम ||
आदेश नाम गायत्री उत्तम जपतांवार न कीजै जनम ||
इतना आदेश नाम गायत्री जाप सम्पूरणं सही |
अटल दलीचे वैठके श्रीनाथजी गुरुजी ने कही ||
अटल दलीचे वैठके श्रीनाथजी गुरुजी ने कही ||
नाथजी गुरुजी को आदेश आदेश ||
नौनाथरक्षा जाप
Nau Nath Raksha Jaap
ॐ अवधूनाथ गोरष आवे, सिद्ध बाल गुदाई |
घोड़ा चोली आवे, आवे कन्थड़ वरदाई || १ ||
घोड़ा चोली आवे, आवे कन्थड़ वरदाई || १ ||
सिध कणेरी पाव आवे, आवे औलिया जालंधर |
अजै पाल गुरुदेव आवे, आवे जोगेसर मछंदर || २ ||
अजै पाल गुरुदेव आवे, आवे जोगेसर मछंदर || २ ||
धूँधलीमल आवे, आवे गोपिचन्द निजततगहणा |
नौनाथ आवो सिधां सहत महाराजै !
नौनाथ आवो सिधां सहत महाराजै !
मुझ रक्षा करणा || ३ ||
Ram Raksha Mantra Jaap
वोउं सीस राखै सांइयां श्रवण सिरजन हार |
नैनूं राषै निरहरी नासा अपरं पार || १ ||
नैनूं राषै निरहरी नासा अपरं पार || १ ||
मुख रक्षा माधवै कण्ठ रक्षा करतार |
हृदै हरि रक्षा करै नाभी त्रिभवण सार || २ ||
हृदै हरि रक्षा करै नाभी त्रिभवण सार || २ ||
जांघ रक्षा जगदीसकी पीडी पालन हार |
गिर रक्षा गोविन्दकी पगतलि परम उदार || ३ ||
गिर रक्षा गोविन्दकी पगतलि परम उदार || ३ ||
आगै राषै रामजी पीछै राषण हार |
बांम दाहिणै राषिलै कर ग्रही करतार || ४ ||
बांम दाहिणै राषिलै कर ग्रही करतार || ४ ||
जम डँक लागै नहीं विघनकालभै दूर |
राम रक्षा जनकी करै वाजै अन हद तूर || ५ ||
राम रक्षा जनकी करै वाजै अन हद तूर || ५ ||
कलेजो राषै केसवो जिभ्याकूं जगदीस |
आतमकूं अलष राषै जीवकूं जोतिसरूप || ६ ||
आतमकूं अलष राषै जीवकूं जोतिसरूप || ६ ||
राष राष सरनागति जीवकूं अवकी वार |
साधांकी रक्षा करै श्रीगोरष सतगुरु सिरजन हार || ७ ||
साधांकी रक्षा करै श्रीगोरष सतगुरु सिरजन हार || ७ ||
Goraksha Panchakshar Jaap
गोरषनाथ लिंवस्वरूपं गउ गो प्रतिपालनं |
अगोचरं गहर गभीरं गकाराइ न्मो न्मो || १ ||
अगोचरं गहर गभीरं गकाराइ न्मो न्मो || १ ||
रहतंच निरालंबं अस्थंभं भवनं त्रियं |
राष राष श्रव भूतानं रकाराइ न्मो न्मो || २ ||
राष राष श्रव भूतानं रकाराइ न्मो न्मो || २ ||
षकार इकयिस व्रह्मांडं षेचरं जगद गुरुं |
षेत्रपालं षडग वंसे षकाराइ न्मो न्मो || ३ ||
षेत्रपालं षडग वंसे षकाराइ न्मो न्मो || ३ ||
नाना सास समो दाइ नाना रूप प्रकासितं |
नाद विंद समो जोति नकाराइ न्मो न्मो || ४ ||
नाद विंद समो जोति नकाराइ न्मो न्मो || ४ ||
थापितं थल संसारं अलेषं अपारं अगोचरं |
थावरे जंगमे सचिवं थकाराइ न्मो न्मो || ५ ||
थावरे जंगमे सचिवं थकाराइ न्मो न्मो || ५ ||
गकारं ग्यान संयुक्तं रकारं रूप लाछ्नं |
षकारं इकीस व्रह्मंडं नकारं नादि विंदए || ६ ||
षकारं इकीस व्रह्मंडं नकारं नादि विंदए || ६ ||
थाकारं थानमानयो थिर थापन थर्पनं |
गोरषनाथ अक्षरं मंत्रं श्रवाधाराइ न्मो न्मो || ७ ||
गोरषनाथ अक्षरं मंत्रं श्रवाधाराइ न्मो न्मो || ७ ||
ॐ गों गोराक्षनाथाय विद्महे शून्यपुत्राय धीमहि तन्नो
गोरक्ष निरंजनः प्रचोदयात् | आदेश आदेश शिवगोरक्ष ||
गोरक्ष निरंजनः प्रचोदयात् | आदेश आदेश शिवगोरक्ष ||
गोरक्षवालं गुरु शिष्यपालं शेषाहिमालं शशिखण्ड भालम |
कालस्यकालं जितजन्मजालं वन्दे जटालं जगदब्ज नालं ||
कालस्यकालं जितजन्मजालं वन्दे जटालं जगदब्ज नालं ||
Shree Bala Jaap Beej Mantra
श्रीबाला जाप बीजमंत्र
ॐ नमो आदेश गुरूजी कौं, आदेश ॐ गुरूजी -
ॐ सोहं ऐं क्लीं श्री सुन्दरी बाला
काहे हात पुस्तक काहे हात माला |
बायें हात पुस्तक दायें हात माला जपो तपो श्रीसुन्दरी बाला |
ॐ सोहं ऐं क्लीं श्री सुन्दरी बाला
काहे हात पुस्तक काहे हात माला |
बायें हात पुस्तक दायें हात माला जपो तपो श्रीसुन्दरी बाला |
जिवपिण्डका तूं रखवाला हंस मंत्र कुलकुण्डली बाला |
बाला जपे सो बाला होय बूढा जपे सो बाला होय ||
बाला जपे सो बाला होय बूढा जपे सो बाला होय ||
घट पिण्डका रखवाला श्रीशंभु जति गुरु गोरख बाला |
उलटंत वाला पलटंत काया सिद्धोंका मारग साधकोंने पाया ||
उलटंत वाला पलटंत काया सिद्धोंका मारग साधकोंने पाया ||
ॐ गुरूजी, ॐ कौन जपंते सोहं कौन जपंते ऐं कौन जपंते |
क्लीं कौन जपंते श्रीसुन्दरी कौन जपंते बाला कौन जपंते ||
क्लीं कौन जपंते श्रीसुन्दरी कौन जपंते बाला कौन जपंते ||
ॐ गुरूजी, ॐ जपंते भूचरनाथ अलख अगौचर अचिंत्यनाथ |
सोहं जपंते गुरु आदिनाथ ध्यान रूप पठन्ते पाठ ||
सोहं जपंते गुरु आदिनाथ ध्यान रूप पठन्ते पाठ ||
ऐ जपंते व्रह्माचार वेद रूप जग सरजन हार |
क्लीं जपंते विष्णु देवता तेज रूप राजासन तपता ||
क्लीं जपंते विष्णु देवता तेज रूप राजासन तपता ||
श्रीसुन्दरी पारवती जपन्ती धरती रूप भण्डार भरन्ती |
बाला जपंते गोरख बाला ज्योति रूप घट घट रखवाला ||
बाला जपंते गोरख बाला ज्योति रूप घट घट रखवाला ||
जो वालेका जाने भेव आपहि करता आपहि देव |
एक मनो कर जपो जाप अन्तवेले नहि माई बाप ||
एक मनो कर जपो जाप अन्तवेले नहि माई बाप ||
गुरु सँभालो आपो आप विगसे ज्ञान नसे सन्ताप |
जहां जोत तहाँ गुरुका ज्ञान गतगंगा मिल धरिये ध्यान ||
जहां जोत तहाँ गुरुका ज्ञान गतगंगा मिल धरिये ध्यान ||
घट पिण्डका रखवाला श्रीशंभु जति गुरु गोरख बाला |
जहां बाला तहां धर्मशाला सोनेकी कूची रुपेका ताला ||
जहां बाला तहां धर्मशाला सोनेकी कूची रुपेका ताला ||
जिन सिर ऊपर सहंसर तपई घटका भया प्रकाश |
निगुरा जन सुगुरा भया कटे कोटि अघ राश ||
निगुरा जन सुगुरा भया कटे कोटि अघ राश ||
सुचेत सैन सत गुरु लखाया पडे न पिण्ड विनसे न काया |
सैन शब्द गुरु कन्हें सुनाया अचेत चेतन सचेत आया ||
सैन शब्द गुरु कन्हें सुनाया अचेत चेतन सचेत आया ||
ध्यान स्वरूप खोलिया ताला पिण्ड व्रह्माण्ड भया उजियाला |
गुरु मंत्र जाप संपूरण भया सुण पारवती माहदेव कह्ना ||
गुरु मंत्र जाप संपूरण भया सुण पारवती माहदेव कह्ना ||
नाथ निरंजन नीराकार बीजमंत्र पाया तत सार |
गगन मण्डल में जय जय जपे कोटि देवता निज सिर तपे ||
गगन मण्डल में जय जय जपे कोटि देवता निज सिर तपे ||
त्रिकुटि महल में चमका होत एकोंकार नाथ की जोत |
दशवें द्वार भया प्रकाश बीजमंत्र, निरंजन जोगी के पास ||
दशवें द्वार भया प्रकाश बीजमंत्र, निरंजन जोगी के पास ||
ॐ सों सिद्धोंकी माया सत गुरु सैन अगम गति पाया |
बीज मंत्र की शीतल छाया भरे पिण्ड न विनसे काया ||
बीज मंत्र की शीतल छाया भरे पिण्ड न विनसे काया ||
जो जन धरे बाला का ध्यान उसकी मुस्किल ह्नोय आसान |
ॐ सोहं एकोंकार जपो जाप भव जल उतरो पार ||
ॐ सोहं एकोंकार जपो जाप भव जल उतरो पार ||
व्रह्मा विष्णु धरंते ध्यान बाला बीजमंत्र तत जान |
काशी क्षेत्र धर्म का धाम जहां फूक्या सत गुरने कान ||
काशी क्षेत्र धर्म का धाम जहां फूक्या सत गुरने कान ||
ॐ बाला सोहं बाला किस पर बैठ किया प्रति पाला |
ऋद्ध ले आवै सुण्ढ सुण्ढाला हित ले आवै हनुमत बाला ||
ऋद्ध ले आवै सुण्ढ सुण्ढाला हित ले आवै हनुमत बाला ||
जोग ले आवे गोरख बाला जत ले आवे लछमन बाला |
अगन ले आवे सूरज बाला अमृत ले आवे चन्द्रमा बाला ||
अगन ले आवे सूरज बाला अमृत ले आवे चन्द्रमा बाला ||
बाला वाले का धर ध्यान असंख जग की करणी जान |
मंगला माई जोत जगाई त्रिकुटि महल में सुरती पाई ||
मंगला माई जोत जगाई त्रिकुटि महल में सुरती पाई ||
शिव शक्ति मिल वैठे पास बाला सुन्दरी जोत प्रकाश |
शिव कैलास पर थापना थापी व्रह्मा विष्णु भरै जन साखी ||
शिव कैलास पर थापना थापी व्रह्मा विष्णु भरै जन साखी ||
बाला आया आपहि आप तिसवालेका माइ न बाप |
बाला जपो सुन्न महा सुन्न बाला जपो पुन्न महा पुन्न ||
बाला जपो सुन्न महा सुन्न बाला जपो पुन्न महा पुन्न ||
बाला जपो जोग कर जुक्ति बाला जपो मोक्ष महा मुक्ति |
बाला बीज मंत्र अपार बाला अजपा एकोंकार ||
बाला बीज मंत्र अपार बाला अजपा एकोंकार ||
जो जन करे बाला की सेव ताकौं सूझे त्रिभुवन देव |
जो जन करे बाला की भ्राँत ताको चढे दैत्यके दाँत ||
जो जन करे बाला की भ्राँत ताको चढे दैत्यके दाँत ||
भरम पडा सो भार उठावै जहाँ जावै तहाँ ठौर न पावै |
धूप दीप ले जोत जगाई तहाँ वैठी श्री त्रिपुरा माई ||
धूप दीप ले जोत जगाई तहाँ वैठी श्री त्रिपुरा माई ||
ऋद्ध सिद्ध ले चौक पुराया सुगुरा जन मिल दर्शन पाया |
सेवक जपै मुक्ति कर पावै बीज मंत्र गुरु ज्ञान सुहावै ||
सेवक जपै मुक्ति कर पावै बीज मंत्र गुरु ज्ञान सुहावै ||
ॐ सोहं सोधन काया गुरु मंत्र गुरु देव बताया |
सव सिद्धनके मुखसे आया सिद्ध वचन निरंजन ध्याया ||
सव सिद्धनके मुखसे आया सिद्ध वचन निरंजन ध्याया ||
ओवं कारमें सकल पसारा अक्षय जोगि जगतसे न्यारा |
श्री सत गुरु गुरुमंतर दीजै अपना जन अपना कर लीजै ||
श्री सत गुरु गुरुमंतर दीजै अपना जन अपना कर लीजै ||
जो गुरु लागा सन्मुख काना सो गुरु हरि हर व्रह्मा समाना |
गुरु हमारे हरके जागे अरज करूं सत गुरुके आगे ||
गुरु हमारे हरके जागे अरज करूं सत गुरुके आगे ||
जोत पाट मैदान रचाया सतसे ल्याया धर्मसे विठाया |
कान फूक सर जीवत कीया सो जोगेसर जुग जुग जीया ||
कान फूक सर जीवत कीया सो जोगेसर जुग जुग जीया ||
जो जन करे बालाकी आसा सो पावै शिवपुरिका वास |
जपिये भजिये श्रीसुन्दरी बाला आवा गवन मिटे जंजाला ||
जपिये भजिये श्रीसुन्दरी बाला आवा गवन मिटे जंजाला ||
जो फल मांगूँ सो फल होय बाला बीज मंत्र है सोय |
गुरु मंत्र संपूरण माला रक्षा करै गुरु गोरख वाला ||
गुरु मंत्र संपूरण माला रक्षा करै गुरु गोरख वाला ||
सेवक आया सरणमें धन्या चरणमें शीष |
बालक जान कर कीजिये दयादृष्टि आशीष ||
बालक जान कर कीजिये दयादृष्टि आशीष ||
गुरु हमारे हरके जागे नीवँ नीवँ नावूँ माथ |
वलिहारी गुरुर आपणे जिन दीपक दीना हाथ ||
वलिहारी गुरुर आपणे जिन दीपक दीना हाथ ||
Dukh Naashini Durgasttotram
दुःखनाशिनी दुर्गास्त्तोत्रं
ॐ पर्व्रह्मा स्वरूपां च वेड गर्भां जगन्मयीम |
शरण्ये त्वामहं वन्दे दुर्गां दुर्गति नाशिनीम || १ ||
शरण्ये त्वामहं वन्दे दुर्गां दुर्गति नाशिनीम || १ ||
कामाख्यां कामदां श्यामां कामरूपां मनोरमाम |
इश्वरीं त्वामहं वन्दे दुर्गां दुर्गति नाशिनीम ||
इश्वरीं त्वामहं वन्दे दुर्गां दुर्गति नाशिनीम ||
त्रिनेत्रां हास्य संयुक्तां सर्वालंकार भूषिताम |
विजयां त्वामहं वन्दे दुर्गां दुर्गति नाशिनीम || ३ ||
विजयां त्वामहं वन्दे दुर्गां दुर्गति नाशिनीम || ३ ||
व्रह्मादिभिः स्तूयमानां सिद्ध गंधर्व सेविताम |
भवानीं त्वामहं वन्दे दुर्गां दुर्गति नाशिनीम ||
भवानीं त्वामहं वन्दे दुर्गां दुर्गति नाशिनीम ||
निशुंभ शुंभ मथनीं महिषासुर घातिनीम |
दिव्यरुपामहं वन्दे दुर्गां दुर्गति नाशिनीम || ५ ||
दिव्यरुपामहं वन्दे दुर्गां दुर्गति नाशिनीम || ५ ||
विंशत्यर्धभुजां देवीं शुद्ध कांचन सन्निभाम |
गौरी रुपामहं वन्दे दुर्गां दुर्गति नाशिनीम ||
गौरी रुपामहं वन्दे दुर्गां दुर्गति नाशिनीम ||
त्रिशूलं खडगं चक्रं च वाणं शक्तिं परश्वधम |
दधानां त्वामहं वन्दे दुर्गां दुर्गति नाशिनीम || ७ ||
दधानां त्वामहं वन्दे दुर्गां दुर्गति नाशिनीम || ७ ||
जगन्मयीं महाविद्यां सृष्टिसंहार कारिणीम |
सर्व दवमहं वन्दे दुर्गां दुर्गति नाशिनीम ||
सर्व दवमहं वन्दे दुर्गां दुर्गति नाशिनीम ||
इदं तु कवचं पुण्यं महामंत्रं महाफलम |
यः पठेन्मानवो नित्य मस्मद्भक्ति समन्वितः |
धनधान्यं प्रयच्छामि सकृदावर्त्तनेन तु || ९ ||
यः पठेन्मानवो नित्य मस्मद्भक्ति समन्वितः |
धनधान्यं प्रयच्छामि सकृदावर्त्तनेन तु || ९ ||
विश्वरक्षामंत्र जापः
Vishwa Raksha Mantra Jaap
या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेश्वलक्ष्मीः
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः |
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः |
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि ! विश्वम् ||
तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि ! विश्वम् ||
सौम्या सौम्यतराशेष सौम्येभ्यस्त्वति सुन्दरी |
परापराणां परमा त्वमेव परमेश्वरी ||
परापराणां परमा त्वमेव परमेश्वरी ||
सौम्यानि यानि रूपाणि त्रैलोक्ये विचरन्ति ते |
यानि चात्यर्थघोराणि तै रक्षास्मां स्तथा भुवम् ||
यानि चात्यर्थघोराणि तै रक्षास्मां स्तथा भुवम् ||
Ann Dev Ki Aarti Jaap
आरती है अन्नदेव तुम्हारी, जाते रहती गुरु काया हमारी |
आरती है अन्नदेव तुमारीजी || टेक ||
राजा प्रजा जोगी आसनधारी सेनकरत गुरु सेवा तुमारी || १ ||
देवी देवता व्रह्मा व्रह्मचारी, सेनकरत गुरु सेवा तुमारी || २ ||
पीर पेगंबर छत्रछत्रधारी सेनकरत गुरु सेवा तुमारी || ३ ||
भनत गोरषनाथ सुननेजाधारी देवनमे देव अन्न मुरारी
आरती है अन्नदेव तुमारीजी || ४ ||
विश्वरक्षामंत्र जापः
Vishwa Raksha Mantra Jaap
या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेश्वलक्ष्मीः
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः |
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः |
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि ! विश्वम् ||
तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि ! विश्वम् ||
सौम्या सौम्यतराशेष सौम्येभ्यस्त्वति सुन्दरी |
परापराणां परमा त्वमेव परमेश्वरी ||
परापराणां परमा त्वमेव परमेश्वरी ||
सौम्यानि यानि रूपाणि त्रैलोक्ये विचरन्ति ते |
यानि चात्यर्थघोराणि तै रक्षास्मां स्तथा भुवम् ||
यानि चात्यर्थघोराणि तै रक्षास्मां स्तथा भुवम् ||
Ann Dev Ki Aarti Jaap
आरती है अन्नदेव तुम्हारी, जाते रहती गुरु काया हमारी |
आरती है अन्नदेव तुमारीजी || टेक ||
राजा प्रजा जोगी आसनधारी सेनकरत गुरु सेवा तुमारी || १ ||
देवी देवता व्रह्मा व्रह्मचारी, सेनकरत गुरु सेवा तुमारी || २ ||
पीर पेगंबर छत्रछत्रधारी सेनकरत गुरु सेवा तुमारी || ३ ||
भनत गोरषनाथ सुननेजाधारी देवनमे देव अन्न मुरारी
आरती है अन्नदेव तुमारीजी || ४ ||
अथ गुरुमन्त्रः
Ath Guru Mantra
Ath Guru Mantra
ॐ गुरुजी ! ओं सोऽहं अलियं कलियं तारा त्रिपुरा तोतला |
काहे हाथ पुस्तक ? काहे हाथ माला ?
बायें हाथ पुस्तक दायें हाथ माला |
जपो तपो श्रीसुन्दरी बाला |
रक्षा करै गुरुगोरक्षनाथ बाला |
जीव पिण्डका तूं रखवाला |
नाथजी गुरुजी आदेश आदेश ||
श्रीगुरुमन्त्रका माहात्म्य
Shree Guru Mantra Kaa Maahaatmya
Shree Guru Mantra Kaa Maahaatmya
ॐ गुरुजी ! ओं सोऽहं अलियं कलियं श्रीसुन्दरी बाला |
कौन जपन्ते ओं ? कौन जपन्ते सोऽहं ? कौन जपन्ते अलियं ? कौन जपन्ते कलियं ? कौन जपन्ते सुन्दरी ? कौन जपन्ते बाला ?
ओं जपन्ते निरन्जन निराकार अवगत सरुपी | सोऽहं जपन्ते माई पारवती महादेव ध्यान सरुपी | अलियं जपन्ते ब्रह्मा सरस्वती वेद सरुपी | कलियं जपन्ते धरतीमाता अन्नपूर्णेश्वरि | बाला जपन्ते श्रीशम्भुयति गुरुगोरक्षनाथ शिव सरुपी |
आ ओ सुन्दर आलं पूछे देह कौन कौक योगेश्वरा ? कौन कौन नगेश्वरा ? धाव धाव ईश्वरी ! धाव धाव महेश्वरी ! बायें हाथ पुस्तक | दाहिने हाथ माला | जपो तपो श्रीसुन्दरी गुरुगोरक्ष बाला |इतना बाला बीजमन्त्र सम्पूर्ण भया अनन्तकोटि सिद्धों में बैठकर श्रीशम्भुयति गुरु गोरक्षनाथजी ने नौनाथ चौरासी सिद्धों को पढ़ कथकर सुनाया सिद्धों ! गुरुपीरो ! आदेश आदेश ||
श्रीगुरुमन्त्रका द्वितीय माहात्म्य
Shree Guru Mantra Kaa Dvitiya Maahaatmya
Shree Guru Mantra Kaa Dvitiya Maahaatmya
ॐ गुरुजी ! पवनपर्वत ऊर्ध्वमुख कुआ सतगुरु आये निरंकार ब्रह्मा आये देखा कौन हाथ पुस्तक ? कौन हाथ माला ? बायें हाथ पुस्तक दाहिने हाथ माला जपो तपो शिवं सोऽहं सुन्दरी बाला | बाला जपे सो बाला होवे | बूढा जपे सो बाला होवे | योगी जपे सो निरोगी होय जपो जपन्त कटन्त पाप | अन्त बेले माई न बाप | गुरु संभालो आपो आप | इतना गुरुमन्त्र सम्पूर्णम् |
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GORAKH SANTAK MOCHAN
बाल योगी भये रूप लिए तब, आदिनाथ लियो अवतारों।
ताहि समे सुख सिद्धन को भयो, नाती शिव गोरख नाम उचारो॥
भेष भगवन के करी विनती तब अनुपन शिला पे ज्ञान विचारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
सत्य युग मे भये कामधेनु गौ तब जती गोरखनाथ को भयो प्रचारों।
आदिनाथ वरदान दियो तब , गौतम ऋषि से शब्द उचारो॥
त्रिम्बक क्षेत्र मे स्थान कियो तब गोरक्ष गुफा का नाम उचारो ।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
सत्य वादी भये हरिश्चंद्र शिष्य तब, शुन्य शिखर से भयो जयकारों।
गोदावरी का क्षेत्र पे प्रभु ने , हर हर गंगा शब्द उचारो।
यदि शिव गोरक्ष जाप जपे , शिवयोगी भये परम सुखारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
अदि शक्ति से संवाद भयो जब , माया मत्सेंद्र नाथ भयो अवतारों।
ताहि समय प्रभु नाथ मत्सेंद्र, सिंहल द्वीप को जाय सुधारो ।
राज्य योग मे ब्रह्म लगायो तब, नाद बंद को भयो प्रचारों।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
आन ज्वाला जी किन तपस्या , तब ज्वाला देवी ने शब्द उचारो।
ले जती गोरक्षनाथ को नाम तब, गोरख डिब्बी को नाम पुकारो॥
शिष्य भय जब मोरध्वज राजा ,तब गोरक्षापुर मे जाय सिधारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
ज्ञान दियो जब नव नाथों को , त्रेता युग को भयो प्रचारों।
योग लियो रामचंद्र जी ने जब, शिव शिव गोरक्ष नाम उचारो ॥
नाथ जी ने वरदान दिया तब, बद्रीनाथ जी नाम पुकारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
गोरक्ष मढ़ी पे तपस्चर्या किन्ही तब, द्वापर युग को भयो प्रचारों।
कृष्ण जी को उपदेश दियो तब, ऋषि मुनि भये परम सुखारो॥
पाल भूपाल के पालनते शिव , मोल हिमाल भयो उजियारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
ऋषि मुनि से संवाद भयो जब , युग कलियुग को भयो प्रचारों।
कार्य मे सही किया जब जब राजा भरतुहारी को दुःख निवारो,
ले योग शिष्य भय जब राजा, रानी पिंगला को संकट तारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
मैनावती रानी ने स्तुति की जब कुवा पे जाके शब्द उचारो।
राजा गोपीचंद शिष्य भयो तब, नाथ जालंधर के संकट तारो। ।
नवनाथ चौरासी सिद्धो मे , भगत पूरण भयो परम सुखारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
दोहा :- नव नाथो मे नाथ है , आदिनाथ अवतार ।
जती गुरु गोरक्षनाथ जो , पूर्ण ब्रह्म करतार॥
संकट -मोचन नाथ का , सुमरे चित्त विचार ।
जती गुरु गोरक्षनाथ जी मेरा करो निस्तार ॥
अल्लख निरंजन ॥ आदेश ॥
ॐ र्हीम र्हाम रक्ष रक्ष शिव गोरक्ष ॥
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बाल योगी भये रूप लिए तब, आदिनाथ लियो अवतारों।
ताहि समे सुख सिद्धन को भयो, नाती शिव गोरख नाम उचारो॥
भेष भगवन के करी विनती तब अनुपन शिला पे ज्ञान विचारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
सत्य युग मे भये कामधेनु गौ तब जती गोरखनाथ को भयो प्रचारों।
आदिनाथ वरदान दियो तब , गौतम ऋषि से शब्द उचारो॥
त्रिम्बक क्षेत्र मे स्थान कियो तब गोरक्ष गुफा का नाम उचारो ।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
सत्य वादी भये हरिश्चंद्र शिष्य तब, शुन्य शिखर से भयो जयकारों।
गोदावरी का क्षेत्र पे प्रभु ने , हर हर गंगा शब्द उचारो।
यदि शिव गोरक्ष जाप जपे , शिवयोगी भये परम सुखारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
अदि शक्ति से संवाद भयो जब , माया मत्सेंद्र नाथ भयो अवतारों।
ताहि समय प्रभु नाथ मत्सेंद्र, सिंहल द्वीप को जाय सुधारो ।
राज्य योग मे ब्रह्म लगायो तब, नाद बंद को भयो प्रचारों।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
आन ज्वाला जी किन तपस्या , तब ज्वाला देवी ने शब्द उचारो।
ले जती गोरक्षनाथ को नाम तब, गोरख डिब्बी को नाम पुकारो॥
शिष्य भय जब मोरध्वज राजा ,तब गोरक्षापुर मे जाय सिधारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
ज्ञान दियो जब नव नाथों को , त्रेता युग को भयो प्रचारों।
योग लियो रामचंद्र जी ने जब, शिव शिव गोरक्ष नाम उचारो ॥
नाथ जी ने वरदान दिया तब, बद्रीनाथ जी नाम पुकारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
गोरक्ष मढ़ी पे तपस्चर्या किन्ही तब, द्वापर युग को भयो प्रचारों।
कृष्ण जी को उपदेश दियो तब, ऋषि मुनि भये परम सुखारो॥
पाल भूपाल के पालनते शिव , मोल हिमाल भयो उजियारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
ऋषि मुनि से संवाद भयो जब , युग कलियुग को भयो प्रचारों।
कार्य मे सही किया जब जब राजा भरतुहारी को दुःख निवारो,
ले योग शिष्य भय जब राजा, रानी पिंगला को संकट तारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
मैनावती रानी ने स्तुति की जब कुवा पे जाके शब्द उचारो।
राजा गोपीचंद शिष्य भयो तब, नाथ जालंधर के संकट तारो। ।
नवनाथ चौरासी सिद्धो मे , भगत पूरण भयो परम सुखारो।
को नही जानत है जग मे जती गोरखनाथ है नाम तुम्हारो ॥
दोहा :- नव नाथो मे नाथ है , आदिनाथ अवतार ।
जती गुरु गोरक्षनाथ जो , पूर्ण ब्रह्म करतार॥
संकट -मोचन नाथ का , सुमरे चित्त विचार ।
जती गुरु गोरक्षनाथ जी मेरा करो निस्तार ॥
अल्लख निरंजन ॥ आदेश ॥
ॐ र्हीम र्हाम रक्ष रक्ष शिव गोरक्ष ॥
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नाथ पंथी धुप मंत्र
ॐ नमो आदेश. गुरूजी को आदेश. ॐ गुरूजी. पानी का बूंद, पवनका थम्ब, जहा
उपजा कल्प वृक्ष का कंध।
कल्पवृक्ष वृक्ष को छाया । जिसमे तिल घुसले के किया वास।
धुनी धूपिया अगन चढाया, सिद्ध का मार्ग विरले पाया।
उरध मुख चढ़े अगन मुख जले होम धुप वासना होय ली, l
एकिस ब्रह्मंडा तैतीस करोड़, देवी देव कुन होम धुप वास।
सप्तमे पटल नव्कुली नाग , वसुक कुन होम घृत वास।
श्री नाथाजी की चरण कम पादुका कुन होम धुप वास।
अलील अनद धर्मं राजा धर्मं गुरु देव कुन होम धुप वास।
धरतरी अकास पवन पानी कुन होम धुप वास।
चाँद सूरज कूं होम धुप वास ,
तारा ग्रह नक्षत्र कूं होम धुप वास।
नवनाथ चौरासी सिद्ध कूं होम धुप वास।
अग्नि मुख धुप पवन मुख वास।
वासना वासलो थापना थाप्लो जहाँ धुप तह देव।
जहा देव तह पूजा . अलख निरंजन और न दूजा।
इति मंत्र पढ़ धुप ध्यान करे सो जोगी अमरपुर तारे।
बिना मंत्र धुप ध्यान करे खाय जरे न वाचा फुरे।
इतना धुप का मंत्र जप संपूर्ण सही। ।
अनंत कोट सिद्ध मे श्री नाथजी कही,
नाथजी गुरूजी कूं आदेश आदेश, , ,
ॐ नमो आदेश. गुरूजी को आदेश. ॐ गुरूजी. पानी का बूंद, पवनका थम्ब, जहा
उपजा कल्प वृक्ष का कंध।
कल्पवृक्ष वृक्ष को छाया । जिसमे तिल घुसले के किया वास।
धुनी धूपिया अगन चढाया, सिद्ध का मार्ग विरले पाया।
उरध मुख चढ़े अगन मुख जले होम धुप वासना होय ली, l
एकिस ब्रह्मंडा तैतीस करोड़, देवी देव कुन होम धुप वास।
सप्तमे पटल नव्कुली नाग , वसुक कुन होम घृत वास।
श्री नाथाजी की चरण कम पादुका कुन होम धुप वास।
अलील अनद धर्मं राजा धर्मं गुरु देव कुन होम धुप वास।
धरतरी अकास पवन पानी कुन होम धुप वास।
चाँद सूरज कूं होम धुप वास ,
तारा ग्रह नक्षत्र कूं होम धुप वास।
नवनाथ चौरासी सिद्ध कूं होम धुप वास।
अग्नि मुख धुप पवन मुख वास।
वासना वासलो थापना थाप्लो जहाँ धुप तह देव।
जहा देव तह पूजा . अलख निरंजन और न दूजा।
इति मंत्र पढ़ धुप ध्यान करे सो जोगी अमरपुर तारे।
बिना मंत्र धुप ध्यान करे खाय जरे न वाचा फुरे।
इतना धुप का मंत्र जप संपूर्ण सही। ।
अनंत कोट सिद्ध मे श्री नाथजी कही,
नाथजी गुरूजी कूं आदेश आदेश, , ,
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गोरक्ष गुरु स्तोत्र
गुरु गुनालय परा , परा धी नाथ सुन्दरा , गुरु देवादिका हुनी वरिष्ठ तूची एक साजिरा
गुना वतार तू धरोनिया जगासी तारिसी , सुरा मुनीश्वरा अलभ्य या गतीसी तारिसी ,
जया गुरुत्व बोधिले तयासी कार्य सधिले , भवार्णवासी लंघिले सुविघ्न दुर्गा भंगीले ,
सहा रिपुन्शी जिंकिले निजात्म तत्त्व चिंतिले , परातपराशी पाहिले
प्रकृष्ट दुख साहिले,
गुरु उदार माउली , प्रशांत सौख्य साउली , जया नरसी पाउली , तयासी सिद्धि गावली
गुरु गुरु गुरु गुरु म्हणोनी जो स्मरे नरु , तरोनी मोह सागरु सुखी घडे निरंतरू,
गुरु चिदब्धि चंद्र हा , महत्पदी महेंद्र हा , गुरु प्रताप रुद्र हा ,
गुरु कृपा समुद्र हा ,
गुरु स्वरुप दे स्वता, गुरुची ब्रह्म सर्वथा , गुरु विना महा व्यथा नसे
जनी निवारिता
शिवा हुनी गुरु असे अधिक मला दिसे , नरासी मोक्ष द्यावया गुरु स्वरुप घेतसे
शिव स्वरुप अपुले न मोक्ष देखिले , गुरुत्व सर्व घेतले म्हणोनी कृत्य साधीले ,
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शिव गोरक्ष बावनी ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रटते शेष महेश॥
सरस्वती पूजन करे वंदन करे गणेश॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रटे जो मन दिन रात॥
आवागमन को भेट के मनवांछित फल पात॥
शिव गोरक्ष शुभनाम से हुए है सिद्ध सुजन॥
नाम प्रभाव से मिट गया लोभ क्रोध अभिमान॥
शिव गोरक्ष शुभनाम से हो जाओ भावः पार॥
कलिकाल में है बड़ा सुंदर खेवन हार॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है जिसने लिया चित्तलय ॥
अश्त्ता सिद्धि नवनिधि मिली, अंत में अमर कहे ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम में शक्ति अपरम्पार ॥
लेत ही मिट जाट है अन्तर के अन्धकार ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है रटे जो निष् दिन जिव ॥
नश्वर यह तन छोड़ के जिव बनेगा शिव॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को मन तू रट ले अघाय
काहे को चंचल भया जैसे पशु हराय॥
शिव गोरक्ष शुभनाम में निष् दिन कर तू वास॥
अशुभ कर्म सब छूट है सत्य का होगा भास॥
शिव गोरक्ष शुभनाम में शक्ति भरी अगाध॥
लेने से ही तर गए नीच कोटि के व्याध ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को जो धरे अन्तर बिच॥
सबसे ऊँचा होत है भले होया वह नीच ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम में करे जो नर अति प्रेम ॥
उसको नही करना पड़े पूजा व्रत जप नेम ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रटे जो बारम्बार
सहजही में हो जायेंगे भावः सिन्धु से पार।
शिव गोरक्ष शुभनाम से सिख लेव अद्वैत।
मेरा तेरा छोड़ दो तजो सका ये द्वैत ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रत्ना आठो यम् ॥
आख़िर में यह आएगी मोदी तुमको कम
शिव गोरक्ष शुभनाम में शक्ति भरी अथाह॥
रटने वालो को मिला भावः सिन्धु का थाह॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को पहिचान जयदेव
यह दुस्सह संसार से तर गए वो तट खेव॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रसना रट तू हमेश॥
वृथा नही बकवाद कर पल पल काहे आदेश॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रतल तू चिट्टा लाया
घोर कलि से बचने का एक यही उपाय ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को मन तू रट दिन रात ॥
झूट प्रपंच को त्याग दे छोड़ जगत की बात॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रसना कर तू याद॥
काहे स्वार्थ में भूल के वृथा करत बद्कवाद॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को मन तू रट दिन रैन ॥
कभू न खली जन दे एक भी तेरा बैन॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को सुमिरे कोटि संत॥
श्री नाथ कृपा से हो गया जन्म मरण का अंत
शिव गोरक्ष शुभनाम है निर्मल पवन गंग
रटने से रहती है सदा सदा रिद्धि सिद्धि सब संग॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है जैसा पूनम चाँद ॥
रटते है निशदिन उन्हें राम कृष्ण गोविन्द ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है जैसा गंगा नीर ॥
रट के उतरे कोटि जन भावः सागर के तीर॥
शिव गोरक्ष शुभनाम में जो जन करते आस
निश्चय वो तो जाट है अलख पुरूष के पास ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है जैसे सुंदर आम ॥
रटने से ही हो गया अमर जगत में नाम ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम में जैसे दीप प्रकाश॥
नित रटने से होत है अलख पुरूष का भास ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है उदधि तरन को जहाज ॥
रटने से हो गया है अमर भरतरी राज ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है जैसे सूर्य किरण ॥
रतल जिव तू प्रेम से चाहे जो सिन्धु तरन ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है निर्मल और विशुधा ॥
रटने से शुदा होत है होया जो जिव अशुधा ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है अमर सुधा रस बिन्द॥
पिने से हो गए है अजर अमर गोपीचंद ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है रटे अनेको राज ॥
जरा मरण का भय मिटा सुधरे सबके काज॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रता है पूरण मल ॥
आधी व्याधि मिट गई जन्म मरण गया टल॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रटते चतुर सुजन
अन्तर तिमिर विनाश हो उपजत है शुध्हा ज्ञान ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है सुंदर उज्जवल भान ॥
रटने वालो को कभी होवे नही कुछ हान॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को परस पत्थर जान ॥
जिव रूपी इस लोह को करते स्वर्ण समान ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को जानो सुर तरु वर ॥
रटने से मिल जाट है जिव को इच्छित वर ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रटते कोटिक संत
नाम प्रताप से कट गया चौरासी का फंद ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम का बहुत बड़ा है पर्व ॥
जिसको है रटते सदा सुर नर मुनि गन्धर्व ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रटते श्री हनुमान
भक्तो में हुए अग्रगण्य देवो में मिला मान ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रटे जो जिव अज्ञान
नाभि प्रताप से होत है निश्चय चतुर सुजान॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है जैसे निर्मल जल ॥
प्रेम लगा रटते रहो क्षण क्षण और पल ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है कलि तरन हार ॥
रटने वालो के लिए खुला है मोक्ष का द्वार॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है जैसा स्वच्छा आकाश ॥
रटने वालो को बना लेते है निज दास॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है अग्ने अपो आप ॥
रटने वालो को सभी जल जाते है पाप ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है अमर सुधारस बिन्दु ॥
पिने से तर जाट है सहज ही में भावः सिन्धु ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम की महिमा अपरम्पार ॥
कृपा सिन्धु की बिन्दु को कार्ड भावः से पार ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को बंदन करू हज़ार ॥
कृपा करो त्रिलोक पार करदो भावः से पार ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को प्रेम सहित आदेश ॥
ऐसी कृपा करो प्रभु रहे नही कुछ शेष ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को कोटि करू आदेश॥
करके कृपा मिटाइए जन्म मरण का क्लेश॥
ॐ शिव गोरक्ष अल्लख निरंजन आदेश ।
गोरक्ष बालम गुरु शिष्य पालं शेष हिमालम
शशि खंड भालं ॥
कालस्य कालं जित जन्म जालम वंदे जटालं जग्दाब्जा नालं ॥
सुने सुनावे प्रेमवश पूजे अपने हाथ ।
मन इच्छा सब कामना , पुरे गोरक्षनाथ
गुरु ॐ गुरु ॐ गुरु ॐ गुरु ॐ गुरु ॐ गुरु ॐ
अल्लख ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
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श्री गोरक्ष अष्टोत्तर नामावली
ॐ श्री गोरक्ष नमः
ॐ उं श्री गोरक्षाया नमः
र्हीं श्री गोरक्षाया नमः
श्री श्री गोरक्ष नाथाय नमः
श्री गों श्री गोराक्षनाथाया नमः
श्री लीं श्री गोरक्षनाथय नमः
श्री हं श्री गोरक्ष नाथायनमः
श्री हाँ श्री गोरक्ष नाथाय नमः
श्री निरंजनात्मा नेय नमः
श्री हूँ श्री गोरक्ष नाथाय नमः
श्री सं श्री गोरक्ष नाथाय नमः
श्री हंसा श्री गोरक्ष नाथाय नमः
श्री गुरुपद जप सत्याय नमः
श्री अद्वैताया नमः
श्री प्राण चैतन्याय नमः
श्री नित्य निर्गुनाया नमः
श्री महत्मनेया नमः
श्री निल्ग्रिवाया नमः
श्री सोहमसद्याकाया नमः
श्री ओमकार रुपेय नमः
श्री गुरु भक्तया नमः
श्री श्री गुरु भौमाय नमः
श्री श्री गुरुचरण प्रियाय नमः
श्री गुरु उपसकाया नमः
श्री श्री गुरु भक्तिप्रियाय नमः
श्री योगेश्वराय नमः
ॐ श्री राजयोगाया नमः
ॐ श्री अस्त्र विद्या प्रविनाय नमः
ॐ अस्त्र विद्या प्रविनाय नमः
श्री वायु नंदा नाय नमः
श्री कमंदालू धार्काय नमः
श्री त्रिशूल धार काय नमः
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शिर गुरु गोरक्षनाथ जी की संध्या आरती
ॐ गुरूजी शिव जय जय गोरक्ष देवा। श्री अवधू हर हर गोरक्ष देवा॥
सुर मुनि जन ध्यावत सुर नर मुनि जन सेवत ।
सिद्ध करे सब सेवा, श्री अवधू संत करे सब सेवा। शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ १॥
ॐ गुरूजी योग युगती कर जानत मानत ब्रह्म ज्ञानी ।
श्री अवधू मानत सर्व ज्ञानी।
सिद्ध शिरोमणि रजत संत शिरोमणि साजत।
गोरक्ष गुन ज्ञानी , श्री अवधू गोरक्ष सर्व ज्ञानी । शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ 2॥
ॐ गुरूजी ज्ञान ध्यान के धरी गुरु सब के हो हितकारी।
श्री अवधू सब के हो सुखकारी ।
गो इन्द्रियों के रक्षक सर्व इन्द्रियों के पालक।
रखत सुध साडी, श्री अवधू रखत सुध सारी। शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ 3॥
ॐ गुर्जी रमते श्रीराम सकल युग माहि चाय है नाही।
श्री अवधू माया है नाही ।
घाट घाट के गोरक्ष व्यापे सर्व घाट श्री नाथ जी विराजत।
सो लक्ष मन माहि श्री अवधू सो लक्ष दिल माहि॥ शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ ४॥
ॐ गुरूजी भस्मी गुरु लसत सर्जनी है अंगे।
श्री अवधू जननी है संगे ।
वेड उचारे सो जानत योग विचारे सो मानत ।
योगी गुरु बहुरंगा श्री अवधू बाले गोरक्ष सर्व संगा। शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ ५॥
ॐ गुरूजी कंठ विराजत सेली और शृंगी जत मत सुखी बेली ।
श्री अवधू जत सैट सुख बेली ।
भगवा कंथा सोहत- गेरुवा अंचल सोहत ज्ञान रतन थैली ।
श्री अवधू योग युगती झोली। शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ ६॥
ॐ गुरूजी कानो में कुंडल राजत साजत रवि चंद्रमा ।
श्री अवधू सोहत मस्तक चंद्रमा ।
बजट शृंगी नादा- गुरु बाजत अनहद नादा -गुरु भाजत दुःख द्वंदा।
श्री अवधू नाशत सर्व संशय । शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ ७॥
ॐ गुरु जी निद्रा मरो गुरु कल संहारो -संकट के हो बेरी।
श्री अवधू दुष्टन के हो बेरी।
करो कृपा संतान पर गुरु दया पालो भक्तन शरणागत तुम्हारी । शिव जय जय
गोरक्ष देवा॥ ८॥
ॐ गुरु जी इतनी श्रीनाथ जी की संध्या आरती।
निष् दिन जो गावे - श्री अवधू सर्व दिन रट गावे ।
वरनी राजा रामचंद्र स्वामी गुरु जपे राजा , रामचंद्र योगी ।
मनवांछित फल पावे श्री अवधू सुख संपत्ति फल पावे। शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ ९॥
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गुरु गुनालय परा , परा धी नाथ सुन्दरा , गुरु देवादिका हुनी वरिष्ठ तूची एक साजिरा
गुना वतार तू धरोनिया जगासी तारिसी , सुरा मुनीश्वरा अलभ्य या गतीसी तारिसी ,
जया गुरुत्व बोधिले तयासी कार्य सधिले , भवार्णवासी लंघिले सुविघ्न दुर्गा भंगीले ,
सहा रिपुन्शी जिंकिले निजात्म तत्त्व चिंतिले , परातपराशी पाहिले
प्रकृष्ट दुख साहिले,
गुरु उदार माउली , प्रशांत सौख्य साउली , जया नरसी पाउली , तयासी सिद्धि गावली
गुरु गुरु गुरु गुरु म्हणोनी जो स्मरे नरु , तरोनी मोह सागरु सुखी घडे निरंतरू,
गुरु चिदब्धि चंद्र हा , महत्पदी महेंद्र हा , गुरु प्रताप रुद्र हा ,
गुरु कृपा समुद्र हा ,
गुरु स्वरुप दे स्वता, गुरुची ब्रह्म सर्वथा , गुरु विना महा व्यथा नसे
जनी निवारिता
शिवा हुनी गुरु असे अधिक मला दिसे , नरासी मोक्ष द्यावया गुरु स्वरुप घेतसे
शिव स्वरुप अपुले न मोक्ष देखिले , गुरुत्व सर्व घेतले म्हणोनी कृत्य साधीले ,
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शिव गोरक्ष बावनी ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रटते शेष महेश॥
सरस्वती पूजन करे वंदन करे गणेश॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रटे जो मन दिन रात॥
आवागमन को भेट के मनवांछित फल पात॥
शिव गोरक्ष शुभनाम से हुए है सिद्ध सुजन॥
नाम प्रभाव से मिट गया लोभ क्रोध अभिमान॥
शिव गोरक्ष शुभनाम से हो जाओ भावः पार॥
कलिकाल में है बड़ा सुंदर खेवन हार॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है जिसने लिया चित्तलय ॥
अश्त्ता सिद्धि नवनिधि मिली, अंत में अमर कहे ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम में शक्ति अपरम्पार ॥
लेत ही मिट जाट है अन्तर के अन्धकार ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है रटे जो निष् दिन जिव ॥
नश्वर यह तन छोड़ के जिव बनेगा शिव॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को मन तू रट ले अघाय
काहे को चंचल भया जैसे पशु हराय॥
शिव गोरक्ष शुभनाम में निष् दिन कर तू वास॥
अशुभ कर्म सब छूट है सत्य का होगा भास॥
शिव गोरक्ष शुभनाम में शक्ति भरी अगाध॥
लेने से ही तर गए नीच कोटि के व्याध ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को जो धरे अन्तर बिच॥
सबसे ऊँचा होत है भले होया वह नीच ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम में करे जो नर अति प्रेम ॥
उसको नही करना पड़े पूजा व्रत जप नेम ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रटे जो बारम्बार
सहजही में हो जायेंगे भावः सिन्धु से पार।
शिव गोरक्ष शुभनाम से सिख लेव अद्वैत।
मेरा तेरा छोड़ दो तजो सका ये द्वैत ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रत्ना आठो यम् ॥
आख़िर में यह आएगी मोदी तुमको कम
शिव गोरक्ष शुभनाम में शक्ति भरी अथाह॥
रटने वालो को मिला भावः सिन्धु का थाह॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को पहिचान जयदेव
यह दुस्सह संसार से तर गए वो तट खेव॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रसना रट तू हमेश॥
वृथा नही बकवाद कर पल पल काहे आदेश॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रतल तू चिट्टा लाया
घोर कलि से बचने का एक यही उपाय ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को मन तू रट दिन रात ॥
झूट प्रपंच को त्याग दे छोड़ जगत की बात॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रसना कर तू याद॥
काहे स्वार्थ में भूल के वृथा करत बद्कवाद॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को मन तू रट दिन रैन ॥
कभू न खली जन दे एक भी तेरा बैन॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को सुमिरे कोटि संत॥
श्री नाथ कृपा से हो गया जन्म मरण का अंत
शिव गोरक्ष शुभनाम है निर्मल पवन गंग
रटने से रहती है सदा सदा रिद्धि सिद्धि सब संग॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है जैसा पूनम चाँद ॥
रटते है निशदिन उन्हें राम कृष्ण गोविन्द ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है जैसा गंगा नीर ॥
रट के उतरे कोटि जन भावः सागर के तीर॥
शिव गोरक्ष शुभनाम में जो जन करते आस
निश्चय वो तो जाट है अलख पुरूष के पास ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है जैसे सुंदर आम ॥
रटने से ही हो गया अमर जगत में नाम ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम में जैसे दीप प्रकाश॥
नित रटने से होत है अलख पुरूष का भास ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है उदधि तरन को जहाज ॥
रटने से हो गया है अमर भरतरी राज ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है जैसे सूर्य किरण ॥
रतल जिव तू प्रेम से चाहे जो सिन्धु तरन ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है निर्मल और विशुधा ॥
रटने से शुदा होत है होया जो जिव अशुधा ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है अमर सुधा रस बिन्द॥
पिने से हो गए है अजर अमर गोपीचंद ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है रटे अनेको राज ॥
जरा मरण का भय मिटा सुधरे सबके काज॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रता है पूरण मल ॥
आधी व्याधि मिट गई जन्म मरण गया टल॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रटते चतुर सुजन
अन्तर तिमिर विनाश हो उपजत है शुध्हा ज्ञान ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है सुंदर उज्जवल भान ॥
रटने वालो को कभी होवे नही कुछ हान॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को परस पत्थर जान ॥
जिव रूपी इस लोह को करते स्वर्ण समान ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को जानो सुर तरु वर ॥
रटने से मिल जाट है जिव को इच्छित वर ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रटते कोटिक संत
नाम प्रताप से कट गया चौरासी का फंद ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम का बहुत बड़ा है पर्व ॥
जिसको है रटते सदा सुर नर मुनि गन्धर्व ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रटते श्री हनुमान
भक्तो में हुए अग्रगण्य देवो में मिला मान ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को रटे जो जिव अज्ञान
नाभि प्रताप से होत है निश्चय चतुर सुजान॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है जैसे निर्मल जल ॥
प्रेम लगा रटते रहो क्षण क्षण और पल ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है कलि तरन हार ॥
रटने वालो के लिए खुला है मोक्ष का द्वार॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है जैसा स्वच्छा आकाश ॥
रटने वालो को बना लेते है निज दास॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है अग्ने अपो आप ॥
रटने वालो को सभी जल जाते है पाप ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम है अमर सुधारस बिन्दु ॥
पिने से तर जाट है सहज ही में भावः सिन्धु ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम की महिमा अपरम्पार ॥
कृपा सिन्धु की बिन्दु को कार्ड भावः से पार ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को बंदन करू हज़ार ॥
कृपा करो त्रिलोक पार करदो भावः से पार ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को प्रेम सहित आदेश ॥
ऐसी कृपा करो प्रभु रहे नही कुछ शेष ॥
शिव गोरक्ष शुभनाम को कोटि करू आदेश॥
करके कृपा मिटाइए जन्म मरण का क्लेश॥
ॐ शिव गोरक्ष अल्लख निरंजन आदेश ।
गोरक्ष बालम गुरु शिष्य पालं शेष हिमालम
शशि खंड भालं ॥
कालस्य कालं जित जन्म जालम वंदे जटालं जग्दाब्जा नालं ॥
सुने सुनावे प्रेमवश पूजे अपने हाथ ।
मन इच्छा सब कामना , पुरे गोरक्षनाथ
गुरु ॐ गुरु ॐ गुरु ॐ गुरु ॐ गुरु ॐ गुरु ॐ
अल्लख ॥ ॥ ॥ ॥ ॥
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श्री गोरक्ष अष्टोत्तर नामावली
ॐ श्री गोरक्ष नमः
ॐ उं श्री गोरक्षाया नमः
र्हीं श्री गोरक्षाया नमः
श्री श्री गोरक्ष नाथाय नमः
श्री गों श्री गोराक्षनाथाया नमः
श्री लीं श्री गोरक्षनाथय नमः
श्री हं श्री गोरक्ष नाथायनमः
श्री हाँ श्री गोरक्ष नाथाय नमः
श्री निरंजनात्मा नेय नमः
श्री हूँ श्री गोरक्ष नाथाय नमः
श्री सं श्री गोरक्ष नाथाय नमः
श्री हंसा श्री गोरक्ष नाथाय नमः
श्री गुरुपद जप सत्याय नमः
श्री अद्वैताया नमः
श्री प्राण चैतन्याय नमः
श्री नित्य निर्गुनाया नमः
श्री महत्मनेया नमः
श्री निल्ग्रिवाया नमः
श्री सोहमसद्याकाया नमः
श्री ओमकार रुपेय नमः
श्री गुरु भक्तया नमः
श्री श्री गुरु भौमाय नमः
श्री श्री गुरुचरण प्रियाय नमः
श्री गुरु उपसकाया नमः
श्री श्री गुरु भक्तिप्रियाय नमः
श्री योगेश्वराय नमः
ॐ श्री राजयोगाया नमः
ॐ श्री अस्त्र विद्या प्रविनाय नमः
ॐ अस्त्र विद्या प्रविनाय नमः
श्री वायु नंदा नाय नमः
श्री कमंदालू धार्काय नमः
श्री त्रिशूल धार काय नमः
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शिर गुरु गोरक्षनाथ जी की संध्या आरती
ॐ गुरूजी शिव जय जय गोरक्ष देवा। श्री अवधू हर हर गोरक्ष देवा॥
सुर मुनि जन ध्यावत सुर नर मुनि जन सेवत ।
सिद्ध करे सब सेवा, श्री अवधू संत करे सब सेवा। शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ १॥
ॐ गुरूजी योग युगती कर जानत मानत ब्रह्म ज्ञानी ।
श्री अवधू मानत सर्व ज्ञानी।
सिद्ध शिरोमणि रजत संत शिरोमणि साजत।
गोरक्ष गुन ज्ञानी , श्री अवधू गोरक्ष सर्व ज्ञानी । शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ 2॥
ॐ गुरूजी ज्ञान ध्यान के धरी गुरु सब के हो हितकारी।
श्री अवधू सब के हो सुखकारी ।
गो इन्द्रियों के रक्षक सर्व इन्द्रियों के पालक।
रखत सुध साडी, श्री अवधू रखत सुध सारी। शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ 3॥
ॐ गुर्जी रमते श्रीराम सकल युग माहि चाय है नाही।
श्री अवधू माया है नाही ।
घाट घाट के गोरक्ष व्यापे सर्व घाट श्री नाथ जी विराजत।
सो लक्ष मन माहि श्री अवधू सो लक्ष दिल माहि॥ शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ ४॥
ॐ गुरूजी भस्मी गुरु लसत सर्जनी है अंगे।
श्री अवधू जननी है संगे ।
वेड उचारे सो जानत योग विचारे सो मानत ।
योगी गुरु बहुरंगा श्री अवधू बाले गोरक्ष सर्व संगा। शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ ५॥
ॐ गुरूजी कंठ विराजत सेली और शृंगी जत मत सुखी बेली ।
श्री अवधू जत सैट सुख बेली ।
भगवा कंथा सोहत- गेरुवा अंचल सोहत ज्ञान रतन थैली ।
श्री अवधू योग युगती झोली। शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ ६॥
ॐ गुरूजी कानो में कुंडल राजत साजत रवि चंद्रमा ।
श्री अवधू सोहत मस्तक चंद्रमा ।
बजट शृंगी नादा- गुरु बाजत अनहद नादा -गुरु भाजत दुःख द्वंदा।
श्री अवधू नाशत सर्व संशय । शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ ७॥
ॐ गुरु जी निद्रा मरो गुरु कल संहारो -संकट के हो बेरी।
श्री अवधू दुष्टन के हो बेरी।
करो कृपा संतान पर गुरु दया पालो भक्तन शरणागत तुम्हारी । शिव जय जय
गोरक्ष देवा॥ ८॥
ॐ गुरु जी इतनी श्रीनाथ जी की संध्या आरती।
निष् दिन जो गावे - श्री अवधू सर्व दिन रट गावे ।
वरनी राजा रामचंद्र स्वामी गुरु जपे राजा , रामचंद्र योगी ।
मनवांछित फल पावे श्री अवधू सुख संपत्ति फल पावे। शिव जय जय गोरक्ष देवा॥ ९॥
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Navgraha Havan Mantra
Navgraha Havan Mantra |
Rudraksha Utpatti (Origin) Mantra
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adesh
ReplyDeleteGuruji ko sadar Pranam,
ReplyDeleteAppse kutch discuss karna hain, please mujhe apni details bataye
mera email ID hain passion9000@hotmail.com
Guru gorkh nath ji ka guru mantra batlatai, apki kripa hogi
ReplyDeleteआदेश आदेश -
ReplyDeleteआपके द्वारा बहुत बहूत महत्त्वपूर्ण ज्ञान दिया गया। अत्यन्त उपयोगी ज्ञान है।
जय हो गुरुदेव की।
Aadesh
ReplyDeleteGuruji ko aadesh
ReplyDeleteGarbh gayatri K bare m bataye plz.
thank's
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दस मुखी रुद्राक्ष का भूल गए
ReplyDeleteADESH ADESH
ReplyDelete